सबसे बड़ा नाम
सबसे बड़ा नाम
प्राचीन काल में एक महान राजा थे। उनकी तीन संतान, तीनों राजा की ही तरह बुद्धिमान और साहसी। तीनों पढ़ाई पूरी करके वापस राज्य महल में आ गये। अब वो जवान हो चुके थे। राजा को उनके बीच राज्य का बंटवारा करने के चिंता होने लगी। ताकत में तीनों का कोई मुकाबला नही, अस्त्र शस्त्र चलाना भी जानते थे। धर्म और न्याय में माहिर। तीनों आपस में एक दूसरे से प्रेम करते थे। आज तक झगड़ा नाममात्र का नहीं हुआ। राजा चाहते थे उनके बाद तीनों के बीच कोई टकराव न हो। अपने आस पास की दुर्दशा देख चुके थे, कैसे राजाओं के पुत्र राज्य गद्दी के लिए लड़ मर रहे हैं। कही उनके पुत्रों में यही तकरार तो पैदा नहीं हो जाएगा।
दिन राजा अपने मंत्रियों कि सभा बुलाई। सभी से सुझाव लिया हमें अपने राज्य का बंटवारा किस तरह करना चाहिए। ताकि भविष्य में उनके बीच किसी बात का आपस में मलाल पैदा न हो। राजा के कुछ मंत्री राज्य को टुकड़े टुकड़े में बांटने का सुझाव दिये। उनका कहना स्पष्ट था कि राज्य का बटवारा बराबर बराबर होना चाहिए। कई मंत्री किसी एक राजकुमार को राजा बनते देखना चाहते थे। जब अपने मंत्रियों के विचार से राजा संतुष्ट नहीं हुए तो एक दिन अपने कुल गुरू के पास पहुँचे, उनके आने पर खूब स्वागत सत्कार हुआ। शिष्य उनकी खातिरदारी में जुट गए। राजा की मुलाकात गुरू से हुई। एकांत जाकर राजा अपने मन की शंका गुरू से कहा और मंत्रियों के भी सुझाव बताये। कुछ देर बाद गुरू बोले
"आपकी चिंता बेशक सही है राजन्। मगर राज्य का बंटवारा टुकड़ों में कतई ठीक नहीं। हमें उन राजकुमारों के मन की बात जान लेनी चाहिए, वो क्या चाहते हैं।"
तब एक एक करके गुरू तीनों राजकुमार से मिले।
"बेटा अपने इस राज्य के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल हैं? भविष्य में तुम खुद को किस पद के लायक समझते हो? "
पहला राजकुमार जवाब दिया
"मुझे किसी पद की कोई लालसा नहीं हैं गुरूजी। आपकी आग्या और पिता जी जो देंगे मुझे मंजूर होगा। मैं नहीं चाहता कि एक राज्य गद्दी के लिए अपने भाइयों से झगड़ा करूँ। जो पद दिया जाएगा कर्तव्य पूर्वक निर्वाहन करूँगा।"
राजकुमार के जवाब से सन्न रह गए। अन्य राजकुमारों को बुलाया गया। उनका भी एक जैसा जवाब था। सभी के मन में भाईयों के प्रति खूब प्रेम देखने का मिला। जिसे देखने के बाद गुरू अति प्रसन्न हुए। किंतु भाई भाई में आत्मिय संबंध देखकर राजा की चिंता बढ़ गई। वो किसे कौन सा पद दे, समझ नहीं पा रहे थे।
फिर गुरूजी ने राजा को उपाय सुझायें। इस बार तीनों राजकुमार को एक साथ बुलाया गया।
गुरू के अनुसार राजा ने उनसे कहा
"तुम्हें एक साल के लिए इस राज्य से कही दूर जाना होगा। एक दूसरे से अलग। जहाँ तुम्हें खुद से कुछ बड़ा करना है। ठीक एक साल बाद तुम्हारे काम को देखेंगे। तुम किसी की मदद लेकर करते हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"
अपने पिता के आग्या का पालन करना उनके स्वाभिमान की बात थी। रात को महल में सोये सुबह नींद कही और खुली।
तीनों खुद को अन्जान जगह पर पाये। बिलकुल साधारण कपड़े, यदि वह किसी से कहते राजा के पुत्र हैं तो कोई यकीन नहीं करता। तीनों को पिता की बात याद आई। वो अपनी जगह से उठे और निकल गये कुछ बड़ा करने।
कुछ दिन यहाँ वहां भटकते रहे, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था। एक दिन छोटे राजकुमार को प्यास लगी, पास में एक कुआँ देखा। उसको देखते ही राजकुमार के मन में उससे भी बड़ा कुआँ बनाने का ख्याल आया। जी भरकर पानी पिया, एक बड़ा कुँआ खोदने के लिए जगह देखा।
कुछ मेहनत करके धन इकट्ठा किया और लग गया अपने काम में। उधर बड़े वाले ने अपने आस पास छोटे मोटे मकान देखा तो उसने तय किया कि मैं एक बहुत बड़ा मकान बनाऊंगा। उसने भी यहां वहाँ से कुछ पैसे का इंतजाम किया और लग गया अपने लक्ष्य पर।
दोनों अपने काम में लग गये, मगर मझला राजकुमार को अभी भी नहीं कुछ सूझ रहा था। कही पेड़, कही पहाड़ ही उसे बड़े नजर आ रहे थे। उनसे बड़ा बना लेना किसी इंसान के वश की बात थी? एक दिन वह चिंता में बैठा हुआ था कि एक गरीब रोता दिखाई दिया। राजकुमार उसके पास जाकर पूछा कि उसे क्या हुआ। गरीब ने बताया
बड़ी मुश्किल से उसने एक बैल खरीदा ताकि वह मुखिया जी से जमीन लेकर खेती कर सके। रात में बैल चोरी हो गया। दूसरा बैल तो ले नहीं सकता, यदि जमीन लेकर खेती नहीं कर सका तो मुखिया उसे जीने नही देगा।
राजकुमार के मन में उसकी मदद का विचार आया। उसके लिए कहाँ से बैल ढूँढ कर लाता।
राजकुमार ने कहा-
"तुम चिंता क्यों करते हो, चलो खेत, तुम्हारा यह हट्टा कट्टा नौजवान बेटा ही बैल का काम कर देगा।"
किसान आश्चर्य से उसकी तरफ देखता रह गया। राजकुमार ने कहा-
"मुझे अपना बेटा ही समझो बाबा। चलो मैं आपकी मदद कर देता हूँ।"
फिर क्या, राजकुमार स्वयं बैल की जगह हल खींचने लगा। गरीब किसान राजकुमार से बहुत खुश हुआ। उसका दिन भर में काम हो गया। राजकुमार को अपने घर ले जाकर खाना खिलाया। मदद करने के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उसकी खुशी देखराजकुमार भी प्रसन्न हो गया। वह भूल गया कि कुछ बड़ा करना हैं। बस जिसे जरूरत पड़ती मदद करने चला जाता।
इस तरह एक वर्ष गुजर गये। छोटे और बड़े राजकुमार ने अपने अपने काम भी पूरा कर लिये। फिर एक दिन उनके काम कि निरीक्षण करने स्वयं राजा अपने गुरू के साथ आये।
छोटे राजकुमार ने स्वयं से बनाया विशाल कुआँ को दिखाया।
"पिता जी आज तक आप इससे बड़ा कुआँ नहीं देखें होंगे।"
वहाँ मौजूद कोई व्यक्ति इतना बड़ा कुआँ नहीं देखा। राजा छोटे राजकुमार के मेहनत पर प्रसन्न हो गये। काम की प्रशंसा करके बड़े राजकुमार के पास पहुंचे। देखा तो उसने विशाल महल तैयार किया था, जो दूर से ही नज़र आ रहा था। राजा उस महल से बड़ा कोई महल आज तक नहीं देखा। बड़े राजकुमार के काम से प्रसन्न हो, मझले राजकुमार के काम का निरीक्षण करने चल गए। मझला राजकुमार ने कुछ किया ही नहीं। राजा नाराज हो गये। उन्हें दुख था कि मझले ने हमारे बात का उल्लंघन किया। तीनों को राज्य में ले जाया गया। जहाँ भरी सभा में छोटे बड़े राजकुमारों के कार्य की प्रशंसा की मझले को कोई कार्य न करने की सजा देने का फैसला किये। राजा कुछ कहते उससे पहले वहाँ मौजूद उनके गुरू को कुछ आभास हुआ तो राजा से बोले-
"राजन् वह प्रस्ताव मेरा था तो निर्णय भी मुझे ही करने दे।"
भला अपने गुरू की बात कौन टाल सकता हैं। राजा उनके सामने नतमस्तक हो गये। गुरू यह कहकर आज की सभा को स्थगित कर दिये कि निर्णय कल किया जाएगा।
मझला राजकुमार आज बच गया। कल भगवान ही जाने। जिस जगह पर राजकुमार कुछ बड़ा करने के लिए रूके थे गुरू ने वहाँ खबर फैलाई फला नाम का व्यक्ति मर गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए जगह बताई गई।
ऐसी खबर सुनकर भला उसके लिए कौन अंतिम दर्शन को जाएगा जो बेवजह बड़ा तालाब जैसा कुआँ खोद दिया। लोग आपस में ही चर्चा करने लगे यह कुआँ तो किसी काम का नहीं, ऊपर से किसी अंजान के लिए खतरा अलग। हम में से तो कोई नहीं जाना चाहेगा।"
ठीक इसी तरह बड़े राजकुमार के बनाये महल के आसपास के लोग भी यही बहाना बनाकर तय स्थान पर जाने के लिए मना कर दिये। यह महल वह अकेला तो बनाया नहीं। कई मजदूरों ने अपनी कड़ी मेहनत किये, तब बन पाया। कौन जाए अब ऐसे व्यक्ति के मरने पर।
किंतु जैसे मझले राजकुमार के बारे में लोगों ने सुना, जो जिस हालात में थे, उसी हालात में हाय राम हाय राम करते पहुँच गये। सिर्फ अंतिम दर्शन ही मिल जाए उस नेक इंसान के। देखते ही देखते तीन सौ से चार सौ व्यक्ति की भीड़ जुट गई। सभी के जुबान पर यही शब्द-हे भगवान यह क्या किया तूने, उस नेक इंसान को इतना जल्दी कैसे अपने पास बुला लिया।"
तब उन सब लोगों के सामने गुरू आये। उन्होंने हाथ जोड़कर सभी से माफी मांगी, लोगों को बताया एक इंसान के लिए अगर इतना प्रेम हैं तो अवश्य वह आदमी कुछ बड़ा किया होगा। आप लोगों को असुविधा हुई, मुझे खेद हैं। हमारे महाराज को यकीन दिलाने के लिए आप लोगों से झूठ बोलना पड़ा।
तब तक अपने राजकुमारों के साथ राजा भी उस जगह पर आये। जहाँ देखा सबसे ज्यादा चाहने वाले तो मझला राजकुमार के हैं। राजा को उस भीड़ का मतलब समझ नहीं आया। जिसने कुछ भी नहीं किया उसके लिए इतनी भीड़?
गुरूजी ने समझाया-
"आपके सवाल का जवाब हैं यह भीड़, आपके दोनों बेटे ने एक गड्ढा खोद कर कुछ बड़ा करने की कोशिश किया तो एक ने मिट्टी का महल तैयार कर दिया। ये सब तो भौतिक चीज हैं, आज हैं कल नहीं रहेंगी। किंतु मझले राजकुमार ने जो किया वही वास्तविक हैं राजन्। उसने कोई चीज बड़ा नहीं बल्कि अपना नाम बड़ा किया। इसीलिए उसके नाम से यह भीड़ जुट गई। वह नाम होता है दूसरे की भलाई करने से। उपकार करने से। मैं चाहता हूं कि आप राज्य का अगला अगला उतराधिकारी मझला राजकुमार को बनाये। छोटे को सेनापति और बड़े को प्रधानमंत्री पद दे। ताकि वो अपने भाई की मदद करके भविष्य में नाम बड़ा करें।"
छोटे और बड़े राजकुमार ने गुरू के वचन निभाने का वादा किये। तत्काल मझला राजकुमार को उतराधिकारी घोषित किया गया, इस तरह राजा की सारी चिंता मिट गई।
