Suraj Kumar Sahu

Drama

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Suraj Kumar Sahu

Drama

रविचंद्र की शादी

रविचंद्र की शादी

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आज रविचंद्र ज्यादा खुश नजर आ रहा है। उसे ख़ुशी हो भी क्यों न, आखिर पूरे दस साल बाद अपने गॉंव जाने का मौका मिला। पच्चीस साल का नौजवान, नये सूट बूट में, बालों का बार बार सँवार रहा है। तेज हवा उनकी पोजीशन बिगाड़ जो दे रही है। बातें कर करके खुद के साथ सामने वाले का समय काट रहा हैं। उसके अलावा वाहन में चालक हैं, जिसके साथ रविचंद्र अपना सफर में निकला। वाहन चालक किसी गहरी चिंता में डूबा, वाहन की गति कभी तेज तो कभी धीमी रफ़्तार से आगे बढ़ा रहा हैं।

वाहन चालक चुपचाप उसकी बक बक सुन रहा था तो सिर्फ इसलिए कि उनकी मुलाकात कुछ दिन पहले हुई थी। रविचंद्र पहली मुलाकात में उसे अपना मित्र बना लिया।  अपने किराये के मकान पर ठहरने की व्यवस्था कर देता। अहसान था उसका, जो आज चुका रहा है। वाहन चालक का नाम बिरजू हैं। चालीस साल की उम्र, चेहरे पर चिंता की लकीर गहरी दिखाई दे रही है। दोनों एक ही क्षेत्र के रहने वाले हैं। आज उसी तरफ जाना हुआ तो रविचंद्र के जाने का जुगाड़ हो गया। वरना जाता वही ट्रेन से पैसे खर्च करके। 

हाँ हूँ का जवाब देकर बिरजू अपने चिंता में खो जाता। आज उससे वाहन नहीं चलाया जा रहा। मगर कही खड़ा भी नहीं कर सकता। जिस चीज की जल्दी है, उसे ही मालूम। बस चिंता नहीं थी तो रवि चंद्र को।

"भाई साहब आप बोलते नहीं। पर मुझे एक पल भी नहीं रहा जाता। बुरा मत मानना कुछ न कुछ बाते होती रहेगीं तो हमारा समय कट जायेगा। "

 रविचंद्र कई बार दोहराकर बिरजू का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश किया। पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। उसकी चिंता समय के साथ बढ़ती जा रही थी। दिन के ३ बज चुके, और उसे रात के ८ बजे तक घर पहुँचना हैं।  घर से बाहर आया ही था कि उसकी छोटी बहन की शादी  तय हो गई। जिसे वह अपने बड़ी बहन के ससुराल में छोड़ आया था। माँ बाप तो बहुत पहले गुजर चुके, बड़ी बेटी की शादी करके। बिरजू को शादी करनी नहीं थी। उसे जब वाहन चलने से फुर्सत मिले तब तो अपने घर परिवार की तरफ ध्यान दे। आज चार साल हो गए अपने घर की सूरत देखे बिना, बीबी बच्चे होते तो जाता भी। मगर जब उसने शादी ही नहीं किया तो कहाँ के बीबी, कहाँ के बच्चे। एक छोटी बहन जो बड़ी बहन के यहाँ रहकर उनके काम में हाथ बटाती हैं, या किसी के यहाँ बनी-मजदूरी करने जाती हैं।

बिरजू घर से निकला था कि कमाई करके छोटी बहन की शादी धूम धाम से करेगा। मगर उसकी जेब कोई टटोलकर देख ले, फूटी कोड़ी नहीं मिलेगी। आखिर मॉल वाहन जो चलाता है, कहाँ से बचे? फिर कौन पूछने वाला हैं

"भैया कितना बचा लेते हो कमाई से? 

कोई पूछता भी तो वह जबाब देने वाला नहीं।

जबकि धन बचना तो कोई रविचंद्र से सीखे। १५-१६ वर्ष की उम्र में किसी खूबसूरत लड़की ने उसके प्यार को यह कह कर ठुकरा दी -

"तुमसे कौन प्यार कर करेगा। जो खुद का गुजारा तो चला नहीं सकता, ऊपर से हमारी जरुरत को कैसे पूरा करेगा?"

प्यार करता था उससे, शादी के बारे में सोचता था। लेकिन वह मानी नहीं तो वह गांव से पैसे कमाने निकला गया। आज इतना पैसा जमा कर लिया, दस वर्ष गांव में बिना काम के गुजारा चला लेगा। परन्तु वह बैठने वालो में से नहीं। गाँव तो सिर्फ इसलिए जा रहा है, शादी हैं उसकी आज रात। किसी के कानों कान खबर नहीं। जिस बिरजू के साथ उसके वाहन में सफर कर रहा, उसे तक भनक नहीं। वर्ना कहीं साथ में न चल दे। जिस लड़की ने उसका पहला प्यार ठुकरा दी थी वह किसी ऊँचे घर से ताल्लुकखात रखती थी। आज वह गरीब घर की लड़की से शादी करने वाला हैं। उसे कोई दहेज़ नहीं चाहिए, लड़की गरीब हो चलेगा। जो उसका घर सम्भाल सके, उसकी तरह पैसा बचा सके। 

पैसे बचाने का जुगाड़, आज बिना किराये चुकाये गाँव क्षेत्र तक पहुँचने का प्रबन्ध कर लिया तब, जब बिरजू की उससे पहली मुलाखत हुई। उसे मालूम हुआ बिरजू उसके ही गाँव क्षेत्र का हैं। बिरजू के आलावा आज तक उसका कोई पता नहीं लगा पाया, वहां कहाँ हैं। बस फोन से बात कर लेता माँ बाप से

"परेशान मत होना माँ, बाबूजी, मै कुशलमंगल हूँ और बहुत बड़ी कम्पनी में कार्यरत हूँ। जहाँ से कभी छुट्टी नहीं मिलती। कोई मेरे से मिल नहीं सकता। जब समय मिलेगा तो आऊंगा घर।"

उसके किराये के मकान में परचित हमेशा आये मगर मकान मालिक के नजर में। दस साल के रहते इतना सीख गया कि पैसे कहाँ कहाँ से कमा सकता है। अब किसी को होटल का खर्चा देने में पूर्ति नहीं हो पाती तो क्या वह सड़क पर सोये। नहीं, रविचंद्र हैं न, बस १००-२०० रुपए दे दो अपना रिश्तेदार बना कर कमरे में रूकने की व्यवस्था कर देगा। खाने पीने की सामग्री ले देना, अपने पैसे से थोड़ी खिलायेगा। उसके पास इतना कौन सा कीमती सामान हैं जो धोखा देकर चोरी कर लेगा। उसे तो नए वस्त्र या कोई पहने योग वस्तु खरीदनी नहीं पड़ती। आने वाले किसी बंधू की अच्छे कपङे पहने देखे बस उसे नापने के नाम पर पहनकर उतरता ही नहीं। 

 "भैया आपसे अच्छी तो मेरे ऊपर जम रही हैं। क्यों न आप दूसरी खरीद ले, ये मैं ले लेता हूं।"

सामने वाला मना भी कैसे करें, घर पर रूका जो हैं। कपडा उसके ढीले ढाले ही क्यों न हो, लेकिन फिट बताना उसकी आदत है। बाद में सही करवा लेता। उसकी एक आदत नहीं हर जगह पैसे बचने की तरकीब थी उसके पास।

शाम का वक्त वाहन में बैठा वह शांत होकर जगती आँखों से सपना देखने लगा। वह देख रहा था शादी के बाद उसकी पत्नी उसकी हर बात तो मानती है, मगर अचनाक एकदिन उसकी बात टाल दी, वह उसको मारने को झपटा, तो चीख उठी बेचारी। कान में सुनाई देने वाली चीख उसकी बिन विवाहित पत्नी की हैं या किसी और की, समझने में देरी हो गई। अचानक आँखों के सामने अंधेरा छा गया। जिस वाहन से सफर कर रहा था, उसका अचानक ब्रेक लगा। मोड़ पर सामने से आ रही कार से, टकराकर बिरजू का वाहन बड़े पेड़ से पर अटक गया। रविचंद्र तो कब शीशे से बाहर फेंक गया पता नहीं चला, मगर बिरजू तीखी चीख के साथ पेड़ के दबाव में हमेशा के लिए शांत हो गया। वह अकेला नहीं था मरने वाला, कार में सवार चालक और दूल्हा बना नौजवान मरे गए। बचे दो अधेड़ उम्र के व्यक्ति जो रविचंद्र से कुछ मिन्नत कर रहे थे। वाहन का दुर्घटना और तीन तीन लाश देखकर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। दोनों अधेड़ व्यक्ति रविचंद्र को दूर लेकर गये। उससे विनती करने लगे

"किसी गरीब की शादी ऐसे मत टूटने दो साहब। दुल्हा जो अब नहीं रहा वह भी असली दूल्हा नहीं हैं। असली दूल्हा प्रदेश से आ रहा परंतु पता नहीं कब तक पहुँचेगा। उसके पहुँचने तक आप दुल्हा बन जाओ। गरीब आपको दुआ देगा।"

वो कौन लोग हैं रविचंद्र नहीं जानता, मगर जान बच गई तो शायद उनकी मदद के लिए। वरना बिरजू की तरह वह भी मर सकता था। सोचकर हाँ कर दिया। चालक बिरजू की जान चली गई अफसोस बहुत हैं। जरा सी जान होती तो शायद किसी बड़े अस्पताल में पहुँचा देते मगर तीनों की साँस रुक चुकी थी। अब उनके घर परिवार का पता मालूम नहीं, तो फिर कहाँ ले कर जाते। लावरिश दूल्हे के जेब में मोबाइल पड़ा मिला तो पुलिस को घटना की जानकारी देकर निकल गए। 

सभी को पुलिस से बचना भी हैं, वरना पहले तो पूछताछ उसके बाद सारी क़ानूनी कार्यवाही में कौन फँसे, सोच कर चलते बने। आखिर उनसे बचकर किसी की शादी निपटना उचित समझा।

दुल्हा बारात की जगह पहुँचा। शादी के कार्यक्रम सम्पन्न होने लगे। दूल्हा तो वैसे भी नकली था तो सर से सेहरा किसी ने नहीं हटाया। न दूल्हा किसी से बात किया। धीरे धीरे रात बीती और शादी के कार्यक्रम पुरे हुए, सिवाय विदाई के। मगर किसी को क्या पता था की जिस घर से दुल्हन की विदाई होनी थी, वहाँ से किसी की अंतिम विदाई होगी।

सुबह सुबह पुलिस के साथ एक शव वाहन घर के सामने आकर खड़ा हुआ। लोगों ने देखा तो मातम छा गया। जहाँ शादी की ख़ुशी में लोग फुले नहीं समां रहे थे वहाँ दुख का पहाड़ खड़ा हो गया। 

"हे भगवान ! यह क्या अनर्थ हो गया। जिस दुल्हन को सारी रात अपने भाई के आने का इंतज़ार था, वह इस हाल में पहुँचेगा। शायद वह सोच भी नहीं सकती थी।" 

सब किसी तरह तसल्ली रखकर दुल्हन की विदाई करने की सोची, उसके विदाई होते ही अंतिम संस्कार किया जायेगा। दुल्हन से छिपाया गया यह कह कर कि

"अभी कुछ ही दूर है तेरा भाई जल्द आ जायेगा, तब तक तू ससुराल चली जा, वह वही आकर मिल लेगा तुझसे। "

मगर वह भी शव वाहन तक आई, देखकर बेहोश होकर गिर पड़ी बेचारी। दूल्हे बना रविचंद्र से रहा नहीं गया तो वह अपने सर का सेहरा हटा लिया। सेहरा हटाते ही उसकी नजर भी लाश पर पड़ी तो अवाक् रह गया।

"अरे ! यह तो बिरजू हैं। कल जिसके साथ सफर में निकला था, दुर्घटना के बाद उसे उसी हालत में छोड़ आया।"

पीछे मुड़ा तो एक बूढ़ा उसको गले लगाकर रोने लगा। वह बूढ़ा कोई और नहीं बल्कि उसका पिता था। जो बहुत देर तक उसका इंतज़ार करने के बाद लावारिश दूल्हा ढूंढ कर शादी करने पहुँचा था। मगर उसे कहाँ पता था की समय ने जो चक्र चलाया उसके आगे किसी की नहीं चली। बिरजू कोई और नहीं बल्कि उसका होने वाला साला था। जो शादी किसी लावारिश के साथ होनी थी, वह सचमुच के दूल्हे के साथ ही सम्पन्न हो गई। किन्तु उसे बहुत पछतावा हो रहा था। जिसे वह अंजान समझता था वह कोई और नहीं बल्कि उसका होने वाला अपना था। जो आज नहीं रहा। रविचंद्र अपने पिता की कंधे में सर रख कर फुट फुट कर रोता रहा, यह कह कर कि -

"पिता जी, वह अपने जिंदगी की सबसे बड़ी सीख पा लिया। अपना घर , अपने लोगों को छोड़कर इतने दिन दूर रहा, सिर्फ इसलिए की वह दौलत जोड़ सके। अरे ! दौलत जोड़ भी लेता तो क्या होता? अगर उसकी मौत बिरजू के साथ ही हो जाती तो।"

वक्त रोने धोने का नहीं, बिरजू के दाह संस्कार का बचा हुआ हैं, रविचंद्र को ही सम्पन्न करना है। आखिर उसके बहन से शादी जो कर लिया।  जितना पैसा आज तक वह पाई पाई करके जोड़ा, पूरा बिरजू के लिए खर्च कर दिया। कुछ दिन बाद दुल्हन को अपने साथ अपने घर ले गया, आज प्रदेश छोड़ कर अपनों के साथ रहने लगा। 


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