सन्नाटा
सन्नाटा
आज से कई वर्ष पहले एक गाँव सन्नाटा में एक दैत्य का ऐसा खौफ कि लोग धीरे धीरे करके वहाँ से पलायन करने लगे। जिस गाँव में कभी दो सौ परिवार बसता था वही मुश्किल से चालीस पचास परिवार बचे। वो लोग जिनकी स्थिति यदि गाँव छोड़ दिये तो शायद ही अपने परिवार के लिए एक टूटी फूटी झोपड़ी बना सके। मरते, क्या न करते बेचारे गुजार रहे थे नर्क वाली जिंदगी।
नर्क ही था सन्नाटा गाँव। दैत्य का ऐसा प्रकोप, जब से स्थान ग्रहण किया तब से सिर्फ दर्द मिला गाँव को। किसी ने देखा नहीं मगर बड़े बुजुर्ग कह गये किसी के सपने में आया था। तब उसने बताया कि जब तक वह यहाँ पर निवास करेगा तब तक किसी घर में ऐसे बच्चे नहीं जन्मेंगा जो हट्टा कट्टा तंदुरुस्त हो। यदि ऐसा जन्म लिया तो उसे पहाड़ी पर चढ़कर दैत्य के स्थान पर कुण्ड से पानी लाकर चढ़ाना होगा। यह काम सिर्फ हट्टा कट्टा जन्मा सात वर्ष तक का बालक ही कर सकता है। यदि ऐसा नहीं कर पाया तो उसकी अठारह बीस वर्ष में मृत्यु हो जायेगी।
अब गाँव वाले करें तो करें क्या? एक तो उसका स्थान पहाड़ के इतना ऊपर जहाँ किसी जवान आदमी का जाना सम्भव नहीं। यही कारण था कि समझदार और सम्पन्न व्यक्ति पहले ही परिवार सहित किसी और गाँव में जाकर बस गये। क्योंकि उनके आँखों के सामने जो होता उससे बड़े पत्थर दिलवाले लोगों का भी दिल रो पड़ता। बच्चा जवान होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता।
आज से बीस पच्चीस साल से यही चल रहा था। जो लोग गाँव छोड़कर चले गये, उनका वंश तो बच गया मगर जो ठहरे, वो अभी भी वही दंश झेल रहे थे।
लगभग अठारह बीस वर्ष का हट्टा कट्टा बच्चा जिस वक्त मरता पूरे गाँव में सांप सूंघ जाता। उस घर में तो सूनसान दुख का पहाड़ टूटता ही टूटता, साथ में दो दिन तक किसी और के घर में चूल्हा नहीं जलता। उसके घर से निकलती अर्थी और श्मशान में जलती चिता लोगों को अंदर तक झकझोर कर रख देती। बेचारे गाँव वालों का रो रोकर बुरा हाल हो जाता, मगर वो गाँव न छोड़ने के वेबशी पर तरस खाकर रह जाते।
गाँव के तो कई लोग, जो अपने बच्चे को दैत्य के पास अकेले भेजने से पैर पीछे हटा लिये। किसी ने तैयार भी किया तो उनका बच्चा उस पहाड़ी की चोटी तो दूर की बात आधी रास्ते से ही गिरकर मर गया। कुछ चोटी के करीब पहुँच कर गिर कर मर गया। यह देख अब किसी ने अपने बच्चे को वहाँ नहीं भेजे। भले वह जवान होते ही आकाल मौत के मुँह में समा जाए।
उसी गाँव में एक व्यक्ति था दीनू। उम्र चालीस वर्ष, गाय भैंस का पालन करता और साथ में खेती बाड़ी। शादी तो बीस वर्ष पहले ही हो चुकी थी, लेकिन पत्नी के कहने पर उसने आज तक बच्चा पैदा नहीं किया। सिर्फ इसलिए कि आखिर उस दैत्य के प्रकोप से बच्चे को बचना तो नामुमकिन हैं, शायद वह बेटे के खोने का गम झेल न सके। इसलिए पैदा ही नहीं करेंगे तो ज्यादा दुख नहीं होगा। दीनू को भी यह बात जम गई इसलिए उसने अपने पत्नी की बात खुशी खुशी स्वीकार लिया।
लगातार गाँव में कमजोर बच्चों को पैदा होते और मजबूत बच्चों को मरते देखकर दीनू को पता नही क्या सूझी। उसने एक दिन खुद से विचार किया।
"क्या वह दैत्य के प्रकोप से गाँव को छुटकारा नहीं दिला सकता? अरे! कुछ नहीं तो एक बच्चा पैदा करके कोशिश तो कर सकता हैं। क्या पता अपने खुद के लड़के में वह इतनी हिम्मत भर सके, वरना गाँव की नस्ल ही खत्म हो जायेगी। समय पाकर उसने अपने पत्नी से कहा। पहले उसकी पत्नी बहुत आनाकानी की। बाद में दीनू के जिद के आगे वह हार गई। उसने समझाया कि हमारा बच्चा चाहे कैसा भी हो, लेकिन मैं उस दैत्य के खात्मा के लिए तैयार करूँगा। इसके बाद उसके पत्नी को मानना ही पड़ा। जैसे वह गर्भवती हुई और पूरे नौ महीने बाद एक हष्ट पुष्ट बच्चे को जन्म दी।
अब तक पूरे गाँव में यह बात फैल चुकी थी, कि दीनू दैत्य के खात्मा के लिए बच्चा पैदा किया हैं। जिसमें कई लोगों ने अपने अपने सुझाव दिये। किसी ने कहा आज तक जो काम कोई नहीं किया वह दीनू का लड़का करेगा, सब हवा हवाई की बात हैं। तो किसी ने दीनू को समझाने की चेष्टा किया कि वह अपने बेटे को स्वयं से मौत के मुँह में ढकेलने की कोशिश न करें। लेकिन वह दीनू था, गाँव का ग्वाल, सुन सबकी लिया लेकिन किया तो बस मन की।
जैसे बच्चा पांच साल का बिता, उसे ताकतवर बनाने में जुट गया। सुबह शाम कसरत, साथ ही दौड़ना भागना। दिन भर मेहनत करवाता। कभी दूसरी पहाड़ियों में प्रशिक्षण के लिए लेकर जाता। ऐसे करते बच्चे को डेढ़ साल होने लगा। तब दीनू उसे पहाड़ी पर जाकर क्या करना हैं के बारे में समझाया। बच्चा प्रशिक्षण पाकर आत्मबल से भर चुका था। वह भी अंदर ही अंदर गाँव को दैत्य से छुटकारा दिलाने की कसम खा लिया। गाँव और परिवार के लोग तो अब भी नहीं चाह रहे थे कि वह पहाड़ी में जाकर दैत्य को खत्म करने की कोशिश करें।
मगर दीनू था जो किसी की नही सूना। उसने बच्चे से कहा-
"इंसान के लिए कोई भी काम कठिन नहीं होता, करने की ठान लो तो मंजिल आवश्यक मिलती हैं। याद रखना जो काम सौंप रहा हूँ उसमें कठिनाइयाँ बहुत हैं मगर उन कठिनाई के आगे तुम्हारी जीत हैं। कुछ भी हो जाये यही सोचना कि मंजिल तुम्हारा इंतजार कर रहीं हैं। इसलिए केवल अपने लक्ष्य पर डटे रहना, मेरा आशीर्वाद तेरे साथ हैं।"
उस वक्त दीनू के आँखों में आँसू थे, उसे मालूम था कि भेज तो रहा है मगर सलामत वापस आ पाये गारंटी नहीं। बच्चा पिता की आग्या मानकर लक्ष्य पर चला गया। इधर दीनू और गाँव वाले उसके सलामती के लिए भजन कीर्तन करने लगे। बच्चा कठिन राह में चलते हुए पहाड़ में चढ़ा जा रहा था। कुछ दूर जाकर वह गाँव वालों की आँखों से ओझल हो गया। कई चट्टानों से होकर उसे गुजरना पड़ा। कई बार गिरा, शरीर में चोट भी आई, मगर उसने किसी चीज की परवाह नहीं की। वह जानता था कि यहाँ तक आकर कई लोग मौत के मुंह में समा गये। उसे लगा आगे बढ़ने के लिए उनकी आत्मा उसे रोक रही हो। पर उसने अपने पिता से सिर्फ एक ही बात सिखा। फिर उसके पास ताकत थी, पांच वर्ष का अनुभव था। वह जल्द ही पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गया।
जैसा गाँव वालों ने कहा, वैसा ही उसे एक कुण्ड मिला, जिसका जल लेकर, एक पेड़ के नीचे रखे लाल पत्थर पर डाला तो वह दैत्य प्रगट हुआ। बच्चे की बहादुरी की प्रशंसा की। और उसे सही सलामत पहाड़ी से नीचे उतारकर गाँव को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया। आज पूरा गाँव दीनू और उसके लड़के की प्रशंसा करते नहीं थकते।
इसलिए कभी भी कठिन काम मानकर छोड़ नहीं देना चाहिए। हो सकता हैं कि हमारी मेहनत की जरूरत हो, सफलता इंतजार कर रही हो, बगैरा बगैरा।
