महात्मा जी के ग्यान की गठान
महात्मा जी के ग्यान की गठान
पुराने समय की बात हैं, घनघोर जंगल में एक महात्मा जी का प्रसिद्ध आश्रम था। जहाँ वो कुछ शिष्यों के साथ गुरूकुल चलाते थे। वो मात्र एक वर्ष ही शिक्षा देते और साल के अंत में परीक्षा लेते थे। आगे की शिक्षा का पात्र वही शिष्य होता जो परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता। किंतु आज तक ऐसा हुआ नहीं, प्रत्येक वर्ष कुछ शिष्य गुरूकुल आते, साल भर शिक्षा लेते फिर सभी की तरह परीक्षा में अनुत्तीर्ण होकर वापस चले जाते।
इससे महात्मा जी को कुछ फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि प्रत्येक वर्ष उन्हें नये शिष्य मिल जाते। पुराने को मजबूर होकर जाना पड़ता। फिर वही छात्र जाकर महात्मा जी की बुराई करते। उन्होंने आज तक विचार नहीं किया कि महात्मा जी उन्हें क्या शिक्षा दिये। सभी का लक्ष्य, महात्मा जी के गुरूकुल में आगे की शिक्षा प्राप्त करना था, जो आज तक यह मुकाम हासिल नहीं हुआ।
यह बात चारों ओर फैल गई, कि महात्मा जी के गुरूकुल की परीक्षा इतनी कठिन है, कोई छात्र उसमें सफल नहीं हो रहा।
फिर वर्ष के प्रारंभ में एक बालक केशव प्रवेश लेने आया। उसको भी वही शर्त बताई गई। जैसे ही साल गुजरा, सभी शिष्यों को परीक्षा देने की बारी आई। रोज एक शिष्य को महात्मा जी सात गठान से बंधा एक कपड़ा देकर कहते, इसकी एक एक गठान बारी बारी से तभी खोलना जब तुम्हें मालूम हो आगें कोई रास्ता बचा नहीं। कपड़ा लेकर हर शिष्य जाता तो कोई बिना जरूरत के पहले ही खोल लेता या फिर कोई आधे सफर से हार कर आकर कहता की इन गठान को खोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
महात्मा जी मुस्काराते फिर उन्हें अनुत्तीर्ण करके वापस भेज देते। आखिर वक्त में जब नम्बर आया केशव को तो उसने महात्मा जी की बात मानकर परीक्षा देने के लिए निकल गए।
रास्ते में उसे खूब उंची चोटी दिखी जिसके ऊपर उसको चढ़ना था। वह उस पहाड़ की चोटी पर पहुँचने के लिए चढ़ना प्रारंभ किया। किंतु एक बालक ही था जल्द थक गया। उसने वह कपड़ा निकाला और एक गठान खोली। देखा तो उसे एक पर्ची मिली जिस पर लिखा था-
"परिश्रम बिना थके तब तक करो जब तक सफलता हाथ नहीं आ जाती।"
यह पढ़कर उसके अंदर अलग ही ऊर्जा का आभास हुआ। फिर क्या था, उसने शीघ्र ही पहाड़ी चढ़ने में कमायब हो गया।
वह कुछ आगे गया कि उसे एक गहरी नदी मिली। जिसके किनारे एक नाव भी रखी हुई थी। वह उसमें सवार हो गया। किंतु यह क्या जैसे ही बीच धार में आया, उसके नाव के आसपास चार मगरमच्छ आकर घेर लिये। वह बस छपट के अपना ग्रास बनाने ही वाले थे कि उसने कपड़े की एक गठान खोली। फिर वही एक पर्ची निकली, जिसमें लिखा था-
"हिम्मत तब तक नहीं हारो, जब तक शरीर में जान हैं।"
फिर क्या था, वह मगरमच्छ से बचते हुए आगें निकल गया। जल्दी ही सुरक्षित नदी के उस पार चला गया। आगे जाने पर उसे एक अजनबी व्यक्ति मिला। जिसने केशव को ढेर सारा ग्यान दिया। उसकी बात सुनकर केशव को उस पर यकीन हो गया। किंतु केशव ने फिर से एक और गठान खोलकर पर्ची पढ़ा जिसमें लिखा था-
"कोई कितना भी ग्यानी हो, उस पर आँख मुंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।"
यह पढ़ने के बाद केशव ने देखा वह अजनबी व्यक्ति चुपके से उसके थैले के एक एक समान को देख रहा था। जो उसे पंसद आया अपने पास रख लिया। यह जान कर केशव उस व्यक्ति के साथ एक पल भी नही रूका। आगे जाने पर उसे एक गाय मिली, जो एक बड़े गड्डे पर गिरी थी। आस पास कोई व्यक्ति नहीं दिखाई दिया। उसने अकेले गाय की रक्षा करने का प्रण लिया। जैसे ही गड्ढे पर जाने लगा वह गाय केशव को मारने के लिए दौड़ने लगी। यह तो बड़ी मुसीबत आ गई।
फिर उसने पुनः एक गाठ खोली जिसमें लिखा था-
"कुछ जीव को स्वभाव होता हैं सामने वाले को मदद के बाबजूद भी परेशान करना। उस बात पर गौर न करके हर सम्भव सेवा करना चाहिए। "
केशव ने खूब मेहनत करके गाय को गड्ढा से निकाला। तभी गाय का मलिक आ टपका। उसने केशव के ऊपर इल्जाम लगाया कि वह गाय को गड्ढे में ढकेलने की कोशिश किया। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों राजा के दरबार पहुँच गये। उसने नहीं सोचा इस तरह मुसीबत आ जायेगी। फिर उसने कपड़े की एक और गठान खोली जिसमें लिखा था-
"जब खुद को बेकसूर साबित करने के सारे विकल्प बंद हो जाये तब मौन होकर अच्छे दिन आने के इंतजार करने चाहिए।"
केशव को कारागार में पहुँचा दिया गया। वह चुपचाप अपने अच्छे दिन आने के लिए इंतजार करने लगा। एक दिन अचानक जिस गाय को बचाया था, उसका मलिक कारागार में आया और केशव को आजाद करने की सिफारिश किया। गाय मलिक ने बताया कि तुम्हारे कारागार होने की खबर सुनकर यह गाय अपने घुँटे पर बैठी नहीं। जब मैंने एक दिन उसे गले से रस्सी छोड़ी तो वह यहाँ तक आई। समझते देर नही लगी, इसलिए आजाद करवा रहा है।
केशव तो परीक्षा देने आया था, वह आगे बढ़ा। उसने देखा एक महात्मा घोर तपस्या में लीन हैं। किंतु उनके शरीर के चारों तरफ मिट्टी को ढेर लगा हुआ हैं। सांप बिल बना चुका। उसने आव देखा न ताव, सर्प को मार दिया। तभी महात्मा की तपस्या भंग हो गई। महात्मा क्रोध से लाल हो गया। केशव डर गया, उसने कपड़े की एक गठान और खोली, जिसमें लिखा था-
"यदि कोई गलती हो जाए तो माफी मांगने में देर नहीं करना चाहिए। "
महात्मा जी से विनय अनुरोध किया तो उसने केशव को माफ कर दिया। साथ ही उसके अंतिम पड़ाव के बारे में जानकारी दिया। केशव कुछ दूर जाने पर अपनी मंजिल पर पहुँच गया। जैसा महात्मा जी ने कहा था कि उसे मंजिल पर एक त्रिशूल मिलेगा, जो सबूत होगा कि कोई भी शिष्य अपनी परीक्षा उत्तीर्ण कर लिया।
केशव त्रिशूल को हाथ में उठाकर वापस चल दिया। रास्ते में उसे कोई परेशानी नहीं हुई और अभी भी कपड़े में एक गठान बची हुई हैं। उसने उत्सुकता से आखिरी गठान खोलकर देखा तो पर्ची में लिखा था -
"ग्यान की बात को समय पर उपयोग करना चाहिए, वरना अपनी मुसीबत को कोई नहीं टाल सकता।"
केशव के हाथ में त्रिशूल देखकर महात्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। गुरूकुल में मात्र एक वही शिष्य था जिसने अपने गुरू के आग्या मानकर आज मंजिल को हासिल किया।