Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

3.5  

Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

भुज्जी और राजमा

भुज्जी और राजमा

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“याद है शिमला की” जब होटल से निकल कर खाना खाते थे ढाबे पर। न वैसा राजमा मिला कहीं, न वैसी भुज्जी। पारुल मानो ख़्यालों में शिमला चली गयी।  हाथों में हाथ डाले घुमना, ठण्डी में ठिठुरते ढाबे में घुसना।  दो प्लेट राजमा और भुज्जी का ऑर्डर देना। 

हाँ भई याद है, योगेश की आँखें भी चमक उठी। कितने साल हो गए ? बाईस साल। पर लगता है कल की ही बात है। तुम बड़ा सा घूँघट डाल कर गाँव के सभी बुजुर्गों के पैर छू रही थी। शाम तक तुम्हारी कमर टूटने लगी थी। रोना आने लगा था ना ? योगेश ने चुटकी ली। 

रोना तो बहुत आ रहा था। गाँव की जो कल्पना मेरे दिमाग़ में थी, वो हवा भरे ग़ुब्बारे की तरह फुस्स हो गयी थी।  गाँव ऐसा भी हो सकता है, सोचा नहीं था।  तुम साथ थे, यही सहारा था। पारुल मुस्कुराई, दर्द की हल्की सी लकीर उभर आयी। क्या मंजर था, ज़्यादातर लोग शराब पी कर टुन्न थे। एक ने तो मेरा घूँघट ही उठा दिया था। बदतमीज़। 

क्या सोचने लगी ?

कुछ भी तो नहीं, यूँ ही पुरानी यादें। 

तुम कितनी भोली थी। आज भी हो वैसे ही।  “ सोने का दिल है तुम्हारा।" बिंदास हँसी, लोट पोट हो जाती थी तुम हँसते / हँसते।  योगेश की आँखों में प्यार ही प्यार था। 

किस जतन से पैसे इकट्ठे किए थे हम दोनों ने शिमला जाने को। याद है ? छः महीने लगे थे उधार चुकाने में। 

तुम तो मिल गयी।  उधार का क्या छः महीने नहीं साल भर में चुकता हो जाता। 

आज बातें बना रहे हो। मैंने क्या देखा नहीं तुम्हें पैसों के लिए परेशान होते। ” बाप रे ! कितनी टेन्शन लेते थे, तभी बाल उड़ गए तुम्हारे ”। पारुल ने चुटकी ली। 

अच्छा कुफ़री याद है ना ? बर्फ़ देखने गए थे।  “ कैसे ठिठुरे थे ” ? याद आया ? 

कैसे भूल सकती हूँ। न हम लोगों के पास कपड़े थे, बर्फ़ की ठंड के हिसाब से और न जूते। ठण्ड के मारे बुरा हाल हो गया था। और तुम्हें तो खुजली होने लगी थी।  पारुल याद कर सिहर गयी। 

हाँ ! ठण्ड से ऐलर्जी थी मुझे।  लेकिन ठीक था सब।  वो वैन का ड्राइवर जो हम लोगों को कुफ़री ले गया था, याद है ? 

हाँ, हाँ खूब याद है, उसने कुर्ता / पायजामा और स्वेटर पहना था, पर ठंड उसको ज़रा सी भी नहीं लग रही थी। हो सकता है, उसको आदत हो। 

“ आदत ही होगी ” योगेश बोला। 

बुड्डे क्यों हो गए तुम ? मैंने जवान लड़के से शादी की थी। तुम्हारी स्किन ऐसी थी, पारुल ने योगेश के गाल को कान की तरफ़ खिंच कर दिखाया। अब ढीली हो गयी तुम्हारे चेहरे की खाल। 

इतने सालों बाद भी ढीली नहीं होगी क्या ? सब के साथ होता है।  तुम पगली हो। 

इतनी बार घर में कोशिश की, कितनी बार बाहर भी खायी, पर भुज्जी का वो स्वाद कभी नहीं मिला फिर।  सुनो ऐसा करते हैं, फिर से शिमला चलते हैं, सिर्फ़ तुम और मैं।  उस ढाबे वाले को ढूँढेंगे।  माल रोड पर घूमेंगे।  कुफ़री बिल्कुल नहीं जाएँगे। 

ठीक है।  नाश्ता तो बनाओगी न आज ? या भुज्जी / राजमा की याद से पेट भरना है ? कोरोना ख़त्म होते ही बनाते है शिमला जाने का प्रोग्राम।  सिर्फ़ तुम, मैं और राजमा / भुज्जी।  अब नाश्ता बना लो मैडम। । 



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