Yashwant Rathore

Abstract Inspirational Others

2  

Yashwant Rathore

Abstract Inspirational Others

असंतुष्ट की संतुष्टि

असंतुष्ट की संतुष्टि

4 mins
168


हम वाकई असंतुष्ट है या हमारे मन में कोई विचार था कि ऐसा न हुआ तो मुझे संतुष्टि न मिलेगी?

और यह विचार हममें उत्पन्न कैसे हुआ। अपने अंतर से या कुछ लोगों की बातें सुनकर या कुछ किताबें पढ़कर।

अगर आपके अंतर की ही मांग है तो फिर उसको प्राप्त करने का एक इंसानी तरीका क्या हो सकता है, उसके अनुसार प्रयास करें।

पर लोगों से या ज्ञानियों से प्रभावित हैं तो दिक्कत है क्योंकि ये असंतुष्टि हर उम्र भर बढ़ती जाएगी।

जैसे दसवीं कक्षा में यूरोप कैसा है, वहां जाने का या जानने का मन न था। पर अब अपने साथियों को देख आप असंतुष्ट हो रहे हो, एक कसक सी है।

कोई परेशान होता है कि जिससे प्यार करता था, उसके साथ जीवन आगे न बढ़ सका। पर जीवन की अपनी चाल है वो किसी विचारधारा में नही बंधता।

क्या हो जाता है अगर पहला प्यार अधूरा रह जाए। 99 परसेंट लोगों का जीवन पहले प्यार के साथ आगे नहीं बढ़ता है। ये सारे असंतुष्टि के विचार आप में बाहर से आये है। ये आपके अंतर की पुकार नहीं हैं।  


एक आध्यात्मिक व्यक्ति चीलम फूंक रहा था, हमने पूछा कि आप क्यों पी रहे हो।तो कहा बड़ी तीव्र इच्छा है अंदर से पूरी न हुई तो अगला जन्म और लेना पड़ जायेगा। सो अपनी इच्छा पूरी कर रहा हूँ ताकि इसी जन्म में मोक्ष के लिए कोई बंधन न रहे।

आप बताए क्या दिक्कत हैं अगर अगला जन्म हो जाए तो, मोक्ष कुछ जन्मों में शिफ्ट हो जाए तो, अगर आप अगले पिछले जन्म को मानते हो तो?

और अगर एक ही जन्म है तो कितना भी भोग ले, कुछ तो बाकी रह ही जाएगा। ज्यादा भोगने के चक्कर में आप अशांत और पागल होते चले जाएंगे।


राजा ययाति की कथा है कि हज़ारों सालो के जीवन मे उसने लाखों स्त्रियों का भोग किया और अंत मे निर्णय दिया भोग ही हमें रोग देते है। हम भोग नहीं भोगते, भोग ही हमें भोग लेते हैं। यह भूख भोजन की तरह है, हर बार लगती ही जाएगी , संयम के बल को विकसित करने से ही छुटकारा संभव है।

शरीर की मूल आवश्यकताएँ भोजन, पानी व हवा है। काम और क्रोध मन में होते हैं शरीर में नहीं। इसलिए साधु, बच्चे और आम मनुष्य का शरीर एक ही जैसा होता हैं।


एक शादीशुदा व्यक्ति मिले, उनको अपने पत्नी पे शक था कि वो वर्जिन न थी। उनको ज्यादा चिंता पत्नी के चरित्र की न थी, बल्कि ये थी की उनको वर्जिन लड़की न मिली।

अब वो इधर उधर नज़र दौड़ा रहे हैं कि कहीं मामला सेट हो जाए। हमने उनसे पूछा कि कितनी जगह डर डर के मुंह मारोगे। उन औरतो और पुरुषों के इंटरव्यूज देख लो कि उनका पहला अनुभव कैसा रहा। एक का भी अनुभव संतुष्टि भरा न होगा। और फिर एक बार से आप संतुष्ट भी कहां होंगे।


भारत और एशिया के कुछ देश जिसमें चीन भी है। यहां की संस्कृति त्याग और बलिदान की रही है। कई कहानियां आपने सुनी होगी कि एक बड़े भाई ने अपने बहनों की शादी करवाने के लिए जीवन भर कमाता रहा, खुद शादी न कि और जीवन भर अपने बहनों के काम आता रहा।  

क्योंकि हमारे यहां उस समय क्या जरूरी है , क्या मुझे करना चाहिए। उस पे ध्यान दिया गया हैं।


1960 में अमेरिका में एक विचारधारा जन्मी। फॉलो योर पैशन। आप जो चाहते हो वो करो।इस विचारधारा ने दुनिया को बहुत बेवकूफ बनाया।

हो सकता है आप घर का भला ही करना चाहते थे। पर अब घर जाए भाड़ में, में हीरो बनना चाहता हूं या पूरी दुनिया घूमना चाहता हूँ। इन सब इच्छाओं के लिए आपको मजबूर सा कर दिया।

अब आपको लगता है ये सब न हुआ तो में असंतुष्ट ही रहूंगा।  


ये सारी बातें भी अगर आप को एक सहजता में नहीं ला पा रही है और आप असंतुष्ट ही है। तो फिर जो आप हासिल करना चाह रहे थे उसके लिए प्रयास रत भी थे, फिर भी साम ,दाम ,दंड ,भेद से भी हासिल न हुआ तो फिर क्या?


भगवद गीता में आता है कि "इच्छाएं उनकी पूरी हो जाती है जिनको कोई आधार मिल जाए।"

आपको आधार न मिले और आप असंतुष्ट ही रहे, आपकी सारी इच्छाएं, चाहते पूरी न हो तो क्या?

असंतुष्ट होते हुए भी क्या आप संतुष्टि के साथ मर सकते हैं?

यही भारतीय गुण व विचारधारा है.

चाह गई चिंता मिटी ,मनवा बे -परवाह ,
जिनको कछु न चाहिए ,वे साहन के साह।        रहीम

इसलिए जानकर भी  हारना सीखे. हारना सन्तुष्टि हैं. प्रेम में लोग दिल हार जाते हैं यानी कि उनका सेल्फ अपने से ज्यादा किसी और को महत्व दे देता है.

सिर्फ जितने वाला, हासिल करने वाला या तो पागल हो जाता हैं या फिर मरते वक्त शैय्या पे ही उसे समझ आता हैं कि वो बहुत कुछ हार गया.



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract