Yashwant Rathore

Romance Tragedy Fantasy

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Yashwant Rathore

Romance Tragedy Fantasy

स्त्री - पुरूष

स्त्री - पुरूष

9 mins
305


( सन 2110)

(झील के किनारे के पास,पहाड़ी पर बैठे दो प्रेमी)

( 28 वर्ष का युवक साधु वेश में, कामिनी सी सुंदर अपनी प्रेमिका से वार्तालाप कर रहा है)

दिव्यांशु - तुम अब भी प्रतीक्षा कर रही हो ?

सरिता - मृत्यु पर्यंत तुम्हारा प्रतीक्षा करूंगी। तुम्हारी तपस्या पूर्ण होने तक।

दिव्यांशु- तुम जानती हो। मेरे दादाश्री व पिताश्री ने इस इस पृथ्वी को पुनर्जीवन दिया। जब मनुष्य मन पूरी तरह मलिन हो गया था। धन व सत्ता के लोभ में, इस धरा को अणु एवम् परमाणु युद्धों से बंजर कर दिया था। विलुप्त होती मानव जाति व इस धरा को को वनस्पतियों,, औषधियों, पेड़ - पोधों से,उन्होंने पुनर्जीवित किया था।

मनुष्य इतना मूर्ख कैसे हो गया था कि अपने ही काल का बीज उसने स्वयं बोया,उसे सींचा भी और स्वयं बढ़ा किया और फिर आत्महत्या भी की।

सरिता - क्या मनुष्य का मन अभी मलिन नहीं? 

 क्या कुछ घटनाओं के बारे में तुमने नहीं सुना?

दिव्यांशु- यह और भी कष्टदायक है। क्या कोई ऐसा मार्ग नहीं, उपाय नहीं,जिसे अपनाकर मनुष्य मन कभी मलीन ही ना हो।बस इसी का हल खोजने में मैंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है। और अब शायद मैं सत्य के बहुत निकट हूं।

सरिता - दिव्यांशु.…

क्या प्रेम का अधिकार सिर्फ मुझे और तुम्हें हैं? आज जहां सब जगह भय व्याप्त है,वहां प्रेम की स्वच्छंदता और स्वतंत्रता कहां!

 मुझे भोजन के लिए हत्या का कारण फिर भी ठीक जान पड़ता है, परंतु कमजोर स्त्रियों,कुमारियो के साथ बलात व्यवहार, उनकी लज्जा भंग! यह सब सुनकर स्वास लेना भी मुझे दुर्भर लगता है।

सरिता - तुम भी दिव्यांशु..

( तभी दिव्यांशु के सिर पर वार होता है।दो लोगों उसे रस्सी से बांध देते हैं)

(सरिता के साथ बलात्कार की घटना।संपूर्ण दृश्य नृत्य के रूप में दिखाया जाए)

(दिव्यांशु की मूर्छा टूटती है।रक्षा के लिए बंधन तोड़ने का प्रयत्न करता है तभी एक छुरा उसके हृदय के आर पार कर दिया जाता है)

दिव्यांशु - हे प्रभु! अगर मेरी श्रद्धा मानवता के लिए सच्ची रही है। तो प्रभु, भविष्य में वह सभी पुरुष जो किसी स्त्री की इच्छा के बिना, उसे बलात हथियाने की चेष्टा करें ;वह उसे छूते ही नष्ट हो जाए। मैं श्राप देता हूं! 

Fadeout

(झील के किनारे के पास,पहाड़ी पर बैठे दो प्रेमी. एक दूसरे से बातें कर रहे हैं।एक दूसरे को प्रेम से निहार रहे हैं)

(तभी मधुर संगीत बजने लगता है और दोनों नृत्य करने लगते है।श्रृंगार रस से भरपूर,प्रेमालाप)

(दोनों नाच रहे हैं कुछ दुष्ट लोग आसपास से आते रहते हैं। युवती को छूने की चेस्टा करते हैं और भस्म हुए जाते हैं)

(दोनों का प्रेमालाप जारी है)

(संगीत और नृत्य से इस दृश्य को सुंदर बनाया जाए)

(दोनों नाचते गाते राइट विंग से निकल जाते हैं)

Fadeout

(नेपथ्य से आवाज "कुछ सालों बाद")

(औरतों की बैठक। मुखिया एक स्त्री है।उसके सामने दो पुरुष और 4 स्त्रीयां खड़ी है)

मुखिया स्त्री - यह सब क्या हो रहा है?

 पुरुष एक - कल एक और पुरुष का हरण हो गया।साथ में उसके पुत्र का भी।पुरुष को उसके पुत्र की हत्या का डर दिखाकर, उसे सहवास के लिए विवश किया गया।

मुखिया स्त्री - कोई बताएगा! पुरुषों की रक्षा का दायित्व किसका है?

 4 औरतें (एक साथ)- हमारा

मुखिया स्त्री - उस नगर का मुख्य रक्षक कौन था?

 स्त्री एक - देवी बिनल

 मुखिया - जो निर्बल पुरुषों की रक्षा नहीं कर सकता। उसे देवी कहलाने का कोई अधिकार नहीं। उससे देवी की उपाधि छीन ली जाए और न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दिए जाए।

Fade out

(न्यायपालिका का दृश्य)

मुखिया स्त्री - न्यायपालिका की कार्रवाई शुरू की जाए।

 स्त्री एक -- उत्तम नगर में पुरुषों की रक्षा का दायित्व तुम्हारा था। क्या तुमने अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण श्रद्धा से किया ?

मुख्य रक्षक (देवी बीनल ) - जी पूर्ण श्रद्धा से।

 मुखिया स्त्री -- फिर ये घटना कैसे हुई?

 मुख्य रक्षक देवी बिनल - कारण आप भी जानते हैं !

मुखिया औरत - कैसा कारण ?

मुख्य रक्षक बिनल - आप जानते हैं पुरुषों की संख्या अत्यधिक कम है। औरतों की भी अपनी शारीरिक आवश्यकताएं हैं। 

मुखिया स्त्री - देवी बिनल,इस नगर के बाहर पुरुषों का वेश्यालय भी तो है।क्या वह... 

देवी बिनल - वहां पहले से ही पुरुषों की संख्या कम है। वहीं उनके लिए इस आनंद की अनुभूति का कोई मूल्य नहीं।वह इससे नीरस है। कितने ही पुरुष बाल्यावस्था में ;अपने घर के, आसपास की स्त्रीयों द्वारा कई घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। अतएव वो नीरस हैं। मुद्राएं दोगुनी करने पर भी कोई इस कार्य में रुकने को तैयार ही नहीं।

मुखिया स्त्री - तो फिर क्या किया जाए।

 देवी बिनल- कोई ठोस उपाय ही खोजना पड़ेगा।अब तो भगवान शिव ही कुछ कर सकते हैं।

मुखिया स्त्री - तो अब शिव ही करेंगे।

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(मुखिया स्त्री, स्त्री 1 और 2 के साथ,भगवान शिव की अर्चना कर रही है। कोरस में गीत चल रहा है)

(शिव की संस्कृत में आरती हो, रोमांचक वातावरण का निर्माण किया जाए)

मुखिया स्त्री - हे महादेव अगर मन वचन और कर्म से मैं शुद्ध रही हूं तो कृपा कर आप दर्शन दे

(प्रसन्न हो शिव दर्शन देते हैं)

शिव -उठो पुत्री

मुखिया स्त्री - प्रभु आप अंतर्यामी हैं। स्त्रियां मृत्यु सा जीवन जी रही है। किसी निरर्थक वस्तु का ना होना भी उसे और मूल्यवान बना देता है। भौतिक अनुभूति की चाह में मानवता की हत्या हो रही है। अब आप ही उपाय सुझाए। 

और यह सब कैसे शुरू हुआ और क्यों?

शिव -बेटी,एक साधु ह्रदय प्रेमी पुरुष का श्राप लगा है, स्त्रियों की रक्षा हेतु।

मुखिया स्त्री - लेकिन यह कैसी रक्षा! यह मृत्यु है।

शिव- अत्यधिक सुरक्षित जीवन की चाह,जीवन ही को मार देती है।

मुखिया स्त्री - क्या पुराने काल में स्त्रियों स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पाती थी? हम तो स्वयं निर्बल पुरुषों को सुरक्षा प्रदान करती है।

शिव - हां, पुत्री हर एक घटना,एक नई घटना की तरफ काल को मोड़ देती है।एक ऐसा युग भी था।जब प्रचुर मात्रा में अस्त्र-शस्त्र भी विद्यमान थे। एक उंगली दबाने मात्र से स्त्री अपनी रक्षा कर सकती थी, प्रतिशोध ले सकते थी। तब भी वह निर्बल ही बनी रही। पुरुष का सहारा तलाश करती रही। अपने प्रतिशोध का भार भी उसने पुरुष पर डाल दिया। कभी भाई, कभी वृद्ध पिता; तो कभी प्रेमी पर !

 स्त्री 1 - स्त्रियां इतनी कायर थी।

शिव - हां और फिर पुरुषों ने उनकी रक्षा का भार, अपने कंधों पर ले लिया और और रक्षा किससे ! स्वयं पुरुषों से।

पुरुषो ने स्त्री की लज्जा भंग को अपने मान सम्मान का प्रश्न बनाया, न की स्त्री का।

स्वयं आत्मनिर्भर होने की अपेक्षा वो पुरुषों के आदेशानुसार चलने लगी।

 स्त्री 2 - वह कैसे ?

शिव- पहले पुरुषों ने उनकी रक्षा के लिए; उनके बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया।उसके बाद उनके वस्त्रों पर,कि क्या क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं।

मुखिया स्त्री - वस्त्रों पर भी 

शिव - हां, स्त्रियां ढकी रहती थी वस्त्रों से। कड़ी धूप में भी, बस दो नेत्रों से देखा करती थी, घर जाने का मार्ग, वो भी धुंधला सा ...

 मुखिया स्त्री - फिर 

शिव - फिर प्रतिबंध लगे उनके मन पर 

मुखिया स्त्री - वो कैसे ?

शिव - उसे बताया गया कि पुरुष को जन्म देने वाली स्त्री, स्वयं निर्बल है। प्रकृति ने जिसे चुना मातृत्व के लिए,वह स्वयं दुर्बल है। 

और नारियों ने यह स्वीकार भी कर लिया।कि हां वह दुर्बल है, निर्बल है।

 स्त्री 1 - अचरज है !

शिव - उस काल में शृंगार कर पुरुषों को लुभाना, आकर्षित करना ही बस,जीवन रह गया था स्त्रियों का।

स्त्री 2- परंतु प्रभु,श्रृंगार तो शोभा हैं नारी की।

शिव - यह भ्रम तुम्ह लोगो को कैसे हुआ।अपने आसपास देखो, प्रकृति को देखो ! श्रृंगार केवल पुरुषों के लिए है। स्त्री स्वंयम ही सौंदर्य है।

 मुखिया स्त्री - वह कैसे !

शिव- मोर को देखो।प्रकृति ने सिंगार मोर को दिया है।मुकुट, तिलक, पंख, विविध रंग। मोरनी को देखो। वह सहज स्वरूप हैं।

 सिंह को देखो। शिरोधरा केसों के हार से सुशोभित। और शेरनी सहज स्वरूप में। कुक्कुट को देखो और कुक्कुटी...

 स्त्री 1- और शिकार भी सिंहनी करती है।

शिव - स्त्री शक्ति का प्रतीक है,फिर स्त्री निर्बल कैसे हो सकती है।

 मुखिया स्त्री - इसका अर्थ पुरुष शृंगार कर स्त्री को आकर्षित करता था।

शिव - स्त्री स्वयं जो सौंदर्य और शक्ति हैं।वो पुरुषों को लुभाने के प्रयास क्यों कर करे।

तीनो स्त्रीयां (एक साथ) - प्रभु,अब आप ही मार्गदर्शन करें।हमारी समस्याएं आपके सामने प्रत्यक्ष हैं।

शिव - ( मुखिया स्त्री को) हल तो तुम्हें पता ही है।

 मुखिया स्त्री - स्त्री के लिए पुरुष ही हल है और पुरुष के लिए स्त्री। दोनों एक दूसरे के पूरक है। किसी एक का अंत होने से समस्त मनुष्य प्रजाति का ही अंत हो जाएगा।

 लेकिन पुरुष है कहां ? पूरी पृथ्वी में कितने पुरुष हैं शेष हैं !

शिव - पुरूष हैं।वो पुरुष बचे रह गए हैं, जिनमें पुरुषत्व हैं। संख्या में कम है। लेकिन यही सही समय भी है, जब आने वाली पीढ़ियां सन्मार्ग पर लाई जाए और यह दायित्व है हर माता और बहन का कि वह अपने पुत्र,भाई को सिखाएं की औरत के साथ क्या व्यवहार उचित है।

मुखिया स्त्री - किन गुणों से युक्त पुरुष बचे रह गए प्रभु ?

शिव- जिन्होंने स्त्री को केवल भोग का साधन न माना। स्वयं की तरह ही जीव माना।

स्त्री 1 - और 

 शिव - जिन्होंने उनसे प्रेम तो किया परंतु स्त्री की अनिच्छा पर उनके साथ बलात कुछ न किया।

स्त्री 2- और 

शिव - वह पुरुष बच्चे रह गए,जिन्होंने प्रेम में त्याग के महत्व को समझा। जिन्होंने प्रेम में पराजय भी स्वीकार की। विवेक त्याग जिसने विजय के लिए अनुचित प्रयास नहीं किए।

मुखिया स्त्री - प्रभु,एक पुरानी कहावत हमने सुनी हैं की

"युद्ध व प्रेम में सब कुछ मान्य हैं। "

शिव - इस पृथ्वी में सबसे विवेकहीन पुरुष की ये उक्ति थी। जिसने शरीर के प्राप्ति को ही प्रेम समझ लिया था।

न युद्ध में और न ही प्रेम में सब कुछ मान्य हैं। 

मनावता की हदे लांघ कर किए गए कर्म कैसे उचित हो सकते हैं।

मुखिया स्त्री - जो अपना मन हार गए ! प्रेम न मिलने पर भी जो प्रेम करते रहे। ऐसी पुरुषों में कोनसा गुण है।

शिव - यह प्रेम का गुण है।

 भंवरे का, पतंगों का, चातक का गुण हैं।

स्त्री 1 - भंवरे का गुण !

शिव - बड़ी से बड़ी कठोर लकड़ी को भी काट देने वाला भंवरा, फूल की कोमल पत्तियों में जब कैद हो जाता है तब उसे काटता नहीं वरन श्वासावरोध होने पर भी,अपने प्राण तक त्याग देता है; परंतु उन्हें काटता नहीं। यह उसका प्रेम है।

स्त्री 2- पतंगे का गुण

 शिव - पतंगे अग्नि के प्रेम में जलकर राख हो जाते हैं।

मुखिया स्त्री - प्रेम ही है हल। चातक का प्रेम!

 शिव - चातक वर्षा की चाह में,शुद्ध पाने की चाह में प्राण त्याग देता है। लेकिन मलिन नदी- नालों से अपनी प्यास नहीं बुझाता।

जब शुद्र जीव जंतु में ये गुण हैं,तो मनुष्य तो परमात्मा की उत्कृष्ट कृति है।

 इकाई -इकाई से समाज का मंदिर बनता है।जब तक एक- एक इकाई संस्कारों के साथ घड़ी नहीं जाएगी। तब तक समाज मंदिर स्वरूप नहीं लेगा  

मुखिया स्त्री - परंतु प्रभु,मनुष्यों में दुर्गुणों है ही क्यूं?

अगर परमात्मा दुर्गुण देते ही नहीं 

शिव - मनुष्य परमात्मा की कटपुतली मात्रा नहीं हैं। परमात्मा के प्रेम की कृति हैं मनुष्य। मनुष्य को वरदान है, परमात्मा का सबसे अनमोल वरदान!

तीनो स्त्रियां - अनमोल वरदान !

शिव - स्वतंत्रता का !

 मुखिया स्त्री - स्वतंत्रता का ?

शिव - मनुष्य स्वतंत्र है चाहे तो दूषित,मलिन, निकृष्ट जीवन व्यतीत करें या उत्कृष्ट जीवन की तलाश करे। ऐसे उत्कृष्ट पुरुष स्त्रियों के संतुलन से ही सृष्टि में जीवन संभव है सरिता।

तीनो स्त्री - सरिता !

शिव - ( मुखिया स्त्री को) -हां पुत्री। तुम ही थी सरिता, शुद्ध प्रेम का प्रतीक। फिर तुम्हारा प्रेम अधूरा कैसे रह सकता है। और है कहीं तुम्हारी प्रतीक्षा करता दिव्यांशु। जैसे कभी तुमने उसकी प्रतीक्षा की थी। जाओ और खोजी दिव्यांशु को और उस जैसे पुरुषों को, जिनमें दिव्यांशु जैसे गुण विद्यमान हो।

 जाओ पुत्री जाओ।

तीनो स्त्रियां - शत शत प्रणाम प्रभु।

(आशीर्वाद देते हैं। शिव अंतर्ध्यान हो जाते हैं)

Fade out

(स्त्रियां खोज में निकलती हैं। पुरुषों परदे के पीछे से निकल निकल कर आते हैं।खुशी से एक दूसरे को देख कर दौड़ के पास आते हैं। गले मिलते हैं।आनंद का,श्रृंगार का वातावरण बनता हैं)

 (गाना शुरू होता है सब नृत्य में मग्न होते हैं )

सरिता व दिव्यांशु प्रेम से आलिंगन करते हैं।


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