Yashwant Rathore

Romance Fantasy

3  

Yashwant Rathore

Romance Fantasy

मनु

मनु

5 mins
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राज - कैसी हो मनु?

मनु - मैं एकदम ठीक हूं। तुम कब आए..

राज - बस आज ही शाम को... तुम्हारी होली कैसी रही..

मनु - खाली....

राज - क्यों?

मनु - बस यूं ही... तुम बताओ दो साल हो गए..... कई बार मन हुआ कि तुमसे बात करूं....लेकिन फिर लगा ......आप अपने कामों में उलझे हुए होंगे..... तो....

राज - हम्म्म, कोई बात नहीं .. मुझे भी तुमसे बहुत बाते कहनी थी लेकिन कह न सका ..

मनु - अब तो कह दो राज..

राज - उस दिन आप पास आ के बैठे। मैं आपसे बाते किए जा रहा था, लेकिन मैं तो सच में प्रेम कर रहा था। उस क्षण में जी रहा था। 

मनु- : यही तो सुख है...

राज: वो चांद, वो तारे, खुला आसमान, हल्की सर्दी का अहसास और तुम। कैसे न खो जाएं हम।

उस दिन आपमें सादगी थी। चेहरे पे सच्ची हँसी थी। वो ही दिन था जब से मेरी इच्छा हुई आपको और जानने की ,बात करने की। क्योंकि मैंने उस दिन बहुत प्यारे पल जीये थे।

मनु- : अहा हा हा.. यादें ताजा हो गई..

राज - : मुझे पता था की, सब झूठ ही सही, लेकिन वहां जिंदगी थी।

मनु- : झूठ नहीं था, सच था, उस पल का सच...

राज - : काश समय वही ठहर जाता

मनु- : चांद कितना सुंदर था ना उस दिन..

राज - : हां और बहुत पास था। एक आंखों के सामने और एक मेरे कंधे पे सिर को लगाए...

मनु- : इसने मुझे निःशब्द कर दिया

राज: शब्द ही नहीं की बयां करूं, बस कोई मेरा बहुत अपना, मेरे साथ था। जिससे उस पल में मुझे अगाध प्रेम मिल रहा था । मैंने एक बार डर के ही तुम्हारे कांधे पे हाथ रखा, लेकिन फिर तुम्हारे बालों की खुशबू और ये नज़दीकी। ऐसे ही किसी पल में, मौत आगोश में ले ले। अनन्त सुखकारी मृत्यु, प्रेममय मृत्यु!

कुछ देर के लिए, तुम में खो जाने का या मेरे न होने का अहसास था। जो बहुत सुखदायी था।

मनु- : इन शब्दों में इतना प्रेम घुला हुआ है तो उन एहसासों में कितना प्रेम होगा।

राज: हम्म.. इसीलिए शब्द अपूर्ण हैं, वो धुरी तो बना सकते हैं, लेकिन जो जिया हैं उसे बता नहीं सकते।

मनु- : हां, ये सच बात हैं।

राज: तुम उस दिन मेरे पास क्यों आई थी, मुझे नहीं पता था। लेकिन वो कुछ घंटे, वो पल। जब भी मैं, मेरे जीवन के खूबसूरत लम्हों को याद करता हूं, तो उसमे वो चांद भी याद आता हैं और याद आती हो तुम। मैं मुस्कुरा उठता हूं । एक पल के लिए वो एहसास मुझे फिर से घेर लेता हैं और हृदय कहता हैं - 'मनु '.......

मनु- : मेरे पास कारण थे आपके पास आने के। एक साफ़ और निश्चल मन है जो खींच लेता है अपनी और जिसके पास जाने पर, सुकून घेर कर हिफ़ाज़त कर रहा होता हैं।

राज: शब्द ही नहीं मिल रहे, आगे क्या कहूं । अहसास के आगे शब्द पूरे नहीं उतरते..

मनु- : शब्द कभी पूरे नहीं पड़ते, एहसास उन्हें पूरे करते है

राज: मैं तुम्हें उस दिन इतना नहीं जानता था। लेकिन मन था की तुम पास यूं ही बैठी रहो। मन हुआ ,तुम्हारे हाथ को अपने हाथ में ले सकूं। लेकिन उसे बुरा लग गया तो... इतना मीठा एहसास क्यों ख़राब करूं। लेकिन जब अपनी इच्छा में, कोई मैल मुझे नहीं दिखा तो मैंने तुम्हारा हाथ देखा। वो उंगलियां बहुत अपनी लग रही थी, जैसे की मुझे पहले ही पता हो की वो अपनी हैं। फिर मैं ठहर गया, मेरे मन में या तुम्हारे मन में, या मैं ही नहीं रहा। शरीर से ऊपर उठकर जीना कितना खूबसूरत एहसास होता हैं, ये फिर तुमने एहसास करवा दिया था।

मनु- : हां ,बहुत खूबसूरत होता है...


राज: फिर एक वक्त आया जब तुम नहीं थी। किसी ने कहा चली गई। लेकिन तुम तो थी मन में..। रजाई से सिर ढके हुवे, आंखें और मन लॉन में तुम्हें तलाश रहे थे। उस रात आंखों में नींद नहीं थी। तुम्हारा बसेरा था। वो जगी रही , अपनी बेवकूफी पे, खुद पे हंसते हुए। लेकिन अब चांद विदा ले चुका था। मन निराश था कि गया वक्त लौट के नहीं आता।

कुछ घंटों बाद ,सूरज ने अंगड़ाई ले, जैसे ही अपनी यात्रा शुरू की, एक पल को नज़र लॉन में फिर गई। सूरजमुखी सूर्य को प्रणाम कर रही थी। फिर वही हुआ, हृदय के खेत लहलहा उठे। हवाओं में संगीत बहने लगा।


बुद्धि ने समझाया कल नशा था, सब नशे में थे। अब जग हसाई होगी। लेकिन में तो नशे में ही था, मेरा नशा उतरा ही कब था।

मैंने सूरजमुखी से पूछा -" क्या कर रहे हो सूर्य नमस्कर" 

और उसने कहा - " हां, मैं सुबह सुबह योगा करती हूं"


मनु- : सब जीवन्त कर दिया आपने, मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा हैं।

राज - क्या कहूं इसके सिवा - शुक्रिया..

तुम भी बताओ, तुम्हें उस दिन क्या लगा। तुम कैसी मन: स्थिति में थी।

मनु- मैं शायद आपकी तरह शब्दों को ना सजा पाऊँ। कहने को सिर्फ एहसास ही है। उस भीड़ में भी तन की जगह मन को तलाशने वाला मिल गया था। मुझे जहाँ कोई खतरा महसूस नही हो रहा था। पास आ कर बैठना बहुत महफूज लग रहा था। एक सुकून था। और मुझे जो शब्दों से और आपसे आती हवाओं से जो प्रेम मिल रहा था वैसा प्रेम कौन नही चाहता। उस रजाई में निश्चल प्रेम की गरमाहट ज़्यादा थी जो रात को बांधे हुए थी। 


और जानते है सबसे खूबसूरत क्या था- जब अगले दिन सब आपको छेड़ रहे थे और जो मुस्कान आपके चेहरे पे थी वो आपका शुद्ध प्रेम जता रही थी।

लेकिन फिर तुम भी चले गए...

राज - हम सब टेंट में ही थे, लगभग सारे लोग। लेटने के लिए मैं कुछ तकिए ले आया था..

मनु - हां, मुझे याद हैं..

राज - तुम सामने ही बैठी थी, कुर्सी पर... मन बावरा होता हैं। वो चाह करने लग गया की तुम पास में आकर  लेट जाओ।
मन ने.. खुद से ही मान लिया की ,कोई उस नज़र से हमको न देखेगा।

मैने तुम्हारे लिए जगह कर रखी थी। मैने अपना हाथ फैला रखा था। लगा तुम मेरे बाजू को अपना तकिया बना लोगी।

लालच था ,थोड़ा और जीने के, तुम में खोने का.. लेकिन सब ख़्वाब थे । जागती आंखों के.... जीवन और प्रेम को बांधा नही जा सकता ,अपने तरीक़े से.. उनके लिए इंतज़ार करना पड़ता हैं.. वो घटित होते हैं .. जब उन्हें उनका आधार मिलता हैं..

तुम क्यों आती, कोई भी क्यों आता। लोग थे वहां ,वो भी होश में.. हमने शायद एक ऐसे समाज का निर्माण कर लिया, जहां जीने के लिए भी कुछ आवरण ज़रूरी होते हैं।

मैं चाहता था तुम्हे गले लगाना, तुम्हारे साथ बैठ और बाते करना..लेकिन आम जीवन में ऐसा नहीं होता.. ऐसा होता हैं साहित्य में, नाटक में, फ़िल्म में या नशे में...

फिर तुम्हारा और मेरा संबंध ही क्या था। हम तो पहली बार ही मिले थे...
बस एक पहचान ही तो थी कि हम दोनो कलाकर हैं...

फिर तुम्हारे नज़दीक के लोग कोई और थे, तुम्हारा प्रेम कोई और था.... मैं तो...

कुछ भी तो नहीं पास मेरे,
मेरे पास जो तुम्हे ले आए..
यहां तो बस मैं हूं, मैं हूं,  बस मैं हूं .....

जितनी ज़िंदगी मिली थी , उसे अपनी झोली में पूरा समेटकर , मैं चला गया..

मनु - .... मैं .......

मनु:  एक बात बताइए आप

राज :- हां

मनु:यह आप मुझसे नजरें क्यों नहीं मिलाते थे, जब भी मिलत थे..

राज: क्योंकि तुम्हारे आंखें बहुत सुंदर हैं, उनमें जीवन झलकता हैं.. और मुझे उनमें खो जाने का डर...  मेरी नज़रों से अगर प्रेम बयां हो जाए और वो सब को दिख जाए, इसलिए चोरी करता था, नज़रे चुराता था..

मैं तुम्हे देखने से भी डरता था। मुझे जुड़ने का डर था, क्योंकि में पूरा ही जुड़ता हूं। मैं तुम्हे थोड़ा सा देखता था, फिर सिर झुका लेता था या इधर उधर देखने लग जाता था...

मनु - ऐसा क्यों...

राज: सच कहूं तो तुम मुझे बहुत सुंदर लगती हो। तुम जब भी आती हो या सामने होती हो तो तुम्हारा aura मुझे घेर लेता हैं। मैं क्या कहता हूं, क्या करता हूं... काफी बार होश नही रहता। फिर ख़ुद को समेटता हूं और संभल के बोलता हूं।

मनु :  इतना प्रेम कैसे संभालु..

राज: बाहर तुम्हे पता नही लगता था, अंदर तूफान मुझे झगझोड़ देता था। इधर से उधर और उधर से इधर.. ये तो मैं हूं जो की ज़बान और पैरों को लड़खड़ाने नहीं देता था...

मनु: चल तो बहुत कुछ रहा होता था ,जो दिखता था ..जब आप नजरें चुराते थे..

राज - इस प्रेम में, मैं अपनी इच्छा से रमा था। तुम इसे बोझ की तरह मत लेना। मैं आपसे कोई उम्मीद नहीं रख रहा। ये नितांत मेरा हैं..

मनु:  अरे ऐसा क्यों कह रहे हैं, ये नितान्त आपका नही हैं...

राज :  फिर वही रात हैं...

मनु :- यह गाना सुना है आपने?

राज : हां सुना है ..

मनु : कितना सुंदर गाना है ना

राज  : बहुत..
तुम्हें बेहतरीन जीवन साथी मिले, तुम बहुत काबिल हो। आंखे झुक जाने की एक वजह थी की ख़ुद को तुम्हारे लिए नाकाबिल समझता था..

मनु: पहली बात तो आप नाकाबिल नहीं है ..मुझे बहुत प्यार करने वाले मिले जरूर है ...लेकिन पता नहीं कैसा अकेलापन मुझे खाता है...

राज :  एक दिन कोई मिलेगा, जब शायद ही अकेलापन ना रहे..
जीवन साथी ज़रूरी नहीं की पति ही हो..। अगर तुम्हें शादी न भी करनी हो तो कोई साथी मिले... जिसके साथ तुम  अपने को पूरा फील करो..

वो क्षण भगवान सबको दिखाए.. मैने जिए थे वो पल.. बहुत समय तक... फिर... जीवन की अपनी चाल हैं... मुझे तो वो किस्तों में मिला हैं.. हमेशा ही...

मनु :  मुझे नहीं चाहिए कोई ;
यह खोखले रिश्ते और प्यार ;
नहीं चाहिए कोई जीवनसाथी ;
कोई साथी नहीं होता जीवन का..

राज : लेकिन जीवन तो साथ होता हैं... जीवन से ही प्यार करो..

मुझे :  मुझे  जीवन से तो प्यार है..

राज :  तुम्हे जब भी देखता हूं, तुम बहुत सुंदर लगती हो..
पता नही कुछ है जो मुझे खुश कर देता हैं या पूरा कर देता हैं.. पता नही...
वजह  जानती हो..

मनु : क्या..

राज : तुम्हारा aura.. तुम छा जाती हो.. बादलों की तरह... घेर लेती हो सबको...बिना कुछ बोले, बिना कुछ किए... तुम्हारी होना व्यापक  होता हैं... फिर सिर्फ बादल दिखते हैं और कुछ भी नही.... ये मुख्य वजह हैं.. क्योंकि फिर हर तरफ तुम दिखती हो और तुम्हारी ही बात हर कोई करता हैं...

मनु : हां , तो ऐसा क्यों होता है ?
कैसे होता है ?
मैं जानना चाहती हूं, ताकि मैं उस से बच सकूं..

राज : वह नहीं हो  सकता... जो तुम्हारा गुण था, उसे ही तुम ने अवगुण कह दिया.. .. फूल समझ के खुशबू नही फैलाते.. ऐसा होता हैं.. उनका अस्तित्व ही ऐसा हैं... तुम डरोगी तो मुरझा जाओगी.. खिली रहो.. जैसी हो.. वैसे रहो

तुम नहीं भी बोलती हो , फिर भी नज़र तुम पर जाती हैं.. क्या करोगी तुम...

मनु : आह... राज...तुम..

तुम्हारी कविताएं पढ़ी.. अच्छा लिखते हो..

राज:  हर बार अपना लिखा देखता हूं, और तुम्हे शुक्रिया कहने का मन होता हैं..

मनु : मुझे क्यूँ !

राज :  वजह तुम ही हो । तुमसे बाते करता था ना .. कितना फायदा होता हैं... फिर कोई बात , तुमसे क्यों न करे...

राज:  मैं कभी कोई प्ले करूंगा ,तुम्हारे साथ... जिसमे शृंगार रस हो... कोई रूमानी से डायलॉग्स हो.... देखना चाहता हूं.. मुझसे हो पाएगा या फिर ... नज़रे चुराऊंगा

मनु : हाहा क्यू नही.... तुम भी.. ऐसी बाते कैसे बनाते हो..

राज:  जो बाते मुझसे निकलती हैं, वो सोच के नही निकलती.. एक इंपैक्ट होता हैं तुम्हारा.. फिर  एहसास होता हैं... फिर उन एहसासों को शब्द देने की कोशिश करता हूं..

मनु : क्या होता होगा ऐसा...

राज : पता नही ..सच कहूं तो तुम छा जाती हो मन पर.. तुम्हारी सूरत उतर आती हैं मन में.. फिर तुम्हे याद करना.. तुम्हे सोचना अच्छा लगता हैं.. कुछ भाव होते हैं.. जो सुख देते हैं.. प्रेम जगाते हैं.. उन भावो में रहना अच्छा लगता हैं.. मैं उन भावो को पालता हूं.. प्यार करता हूं उनसे.. अपने जीवन में संजो के रखता हूं.. तो शब्दो के रूप में वो बाहर आते हैं..

मनु :- राज..
मैने तुम्हे एक प्ले की फोटो शेयर की थी...याद हैं..

राज :  हे भगवान ...वो फोटो.. तुम बहुत सुंदर हो मनु...

तुम्हारी बिंदी, तुम्हारे बाल, तुम्हारी मुस्कुराट और पूरी तुम..
कोई कविता न कहे तो ,फिर कैसे कहे तुम्हे.....

मनु : यह भी एक कविता ही हैं...

राज : सच कहूं तो अब....तुमसे प्यार करने के लिए... तुम्हारी ही ज़रूरत नही...

मनु :-ऐसा क्यों कह रहे हो..

राज :- क्योंकि ऐसा होता हैं मनु..
तुमने "नवरंग" मूवी देखी हैं.

मनु: उस कहानी में एक आदमी अपनी पत्नी से इतना प्यार करता हैं की उसे याद कर कर के गाने लिखता हैं.. झूमता हैं... गाता हैं.. पत्नी को लगता हैं ,कोई और औरत से चक्कर होगा... वो चली जाती हैं.. फिर वो तड़पता हैं..

मनु : ये तो ... दुखदायी हैं..

राज : लेकिन आखिर मैं मिल जाते हैं.. हमारा हिंदी सिनेमा..

मनु : फिर तो अच्छा हैं

राज : शाम ढलने वाली हैं, रात चढ़ने वाली.. तुम्हे देरी तो नही हो रही..

मनु : नही, मैं यही रुकना चाहती हूं, तुम्हारे पास..

राज : मैं भी रुक जाना चाहता हूं फिर से  उसी लॉन में, उन्ही कुर्सियों पर, जहां वक्त ठहर गया था..

मनु :  हां और चाहे तो आप मेरा हाथ भी देख सकते है

राज: क्या तुम्हे पता चला जब मेने अपना हाथ तुम्हारे कंधे पर रखा !

मनु : उस दिन की यादे थोड़ी धूंधली है..

राज : हम्म् ..बहुत पी रखी थी तुमने.. जीरो नंबर दिया था मैंने तुम्हें.

मनु : बहुत अच्छे से याद है मुझे कुछ बाते..

राज : मैं डरा हुआ था, तुम्हारा सिर कांधे पर था.. तुम्हारे बालों की खुशबू ने जैसे कोई जादू सा कर दिया था.. एक मदहोशी सी थी.. खुमारी सी... मेरे प्राण चीख कर कह रहे थे की तुम्हारे कंधे पर हाथ रखूं..

जैसे तुम बैठी हो निश्चल, वैसे मैं भी ....

मनु: फिर आपने रखा था हाथ..

राज : हां, फिर हिम्मत करके मेने कंधे पर हाथ रखा.. तुम इतनी पास थी की, हाथ ने तुम्हारे बाए हाथ को छुआ... बस फिर मैं वैसे ही बैठा रहा.. उससे ज़्यादा की कोई इच्छा ही न थी, ना कोई खयाल आया.. मैं वैसे ही रहा.. काफी देर तक.. जब तक तुम्हारा हाथ न देखना ,शुरू किया..

मनु :- मैं क्या कहूं कितना प्रेम भरा हुआ है आपकी यादों में..

राज : और जिसकी वजह से ये हुआ, उसको याद ही नहीं... सदमा मूवी...

मनु : हा हा हा.. सॉरी.. कुछ कुछ याद हैं... कुछ कुछ नही..

राज : अब समझ आया तुम्हे वो मूवी क्यों पसंद हैं..

मनु-  मुझे बस उस कंधे पर बहुत सुकून मिल रहा था ;जैसे बरसो बाद मिला हो

राज - देखो वैसे तो मैं भगवान, अगला पिछला जन्म नही मानता... लेकिन एक कनेक्शन होता है, जिसे मैं शब्द नही दे सकता..

मनु :- हां....

राज:-  जैसे प्ले के दिन आप आए.. आप हाथ मिलाने आए... मेने कहा.. मैं हाथ नही मिलाता.. और मैं गले मिला.. इतना सीधा मैं नहीं कह सकता किसी को

मनु :-तुम्हारा मन साफ था.. सुनके में बुरा नहीं लगा

राज :-  जबकि उससे पहले हमारी तो कोई  बात ही नहीं हुई थी..

मनु :जी

राज : मैं तो तुम्हे देखता भी नज़र बचा के था..
सच कहूं तो तुमसे डरता भी था.. की कोई बात ठेस न पहुंचा दे.. तुम्हे गुस्सा न आ जाए..

मनु-  यह जरूरी भी है..
वैसे एक बात कहूं ,
आज तक हिम्मत तो नहीं हुई याद दिलाने की..
उसी रात की बात है..

राज : हां मनु, कहो..

मनु :- ठीक से याद तो नहीं .... मैं तुम्हारे कंधे पर सर रखकर अधलेटी सी थी..
आपका हाथ  मेरे कंधे पर था या हाथ पर था ; जो फिसल के कमर पर आ गया था..
एक बार को मैं डरी थी कि कहीं आपने ऐसा जानबूझकर तो नहीं किया...

मैं दो मिनट शांत रही और मुझे कोई गंदगी महसूस नहीं हो रही थी तो फिर मैं वापस निश्चिंत होकर सो गई..

राज  : हां ऐसा हुआ था..

मनु : आपको पता था

राज : हां,  तुम इतनी नजदीक थी की मेरा हाथ आपके हाथ पे था.. आप मेरी तरफ थे.. तो.. वैसे ही हाथ लग रहा था.. लेकिन मैने हाथ को स्टेबल रखा ,ताकि कोई गलत इंटेंशन न लगे..

मनु:  अच्छा..

राज : वो पल इतने भरे हुवे थे कि.. संतुष्टि से भर चुके थे मुझे.. फिर प्यास.. क्या रहेगी..
मुझे क्या फील हुआ .. बताता हूं..
तुम्हारे हाथ पे मेरा हाथ गया... वो स्पर्श क्या था क्या कहूं... जैसे की मैं पूरा हो गया.. जैसे मन रेगिस्तान सा तप रहा था और बादल बरस गए... उसके बाद क्या मांगता में..

मनु: अहाहा इससे सुन्दर क्या होगा

राज :  सरल शब्दों में कहूं,, तुम्हारा छुआ बहुत अपना था.. मुझे लगा ही नहीं तुम कोई और हो..
जैसे कोई मेरा बहुत अपना हैं.. मेरा हैं..

मनु: मुझे भी नही लगा की कोई और छू रहा है..

राज : लेकिन तुम्हारे छुए से जो सुकून और तृप्ति मिली.. बस साथ भर बैठने से.. क्या कहूं..

मनु :- राज, मैं तुम्हारे गोदी में सिर रख के सोना चाहती हूं...सालो की नींद हैं ,पूरी हो जाएगी..

राज:-  थोड़ी आजादी दोगी कुछ कहने की..

मनु : कहो..

राज:- मैं क्या चाहता हूं..
लेकिन इसको गलत न  लेना...  मेरी कोई वैसी एक्सपेक्टेशन नहीं है आपसे.. ना ही कुछ ऐसा चाहता हूं..

मैं सोचता हूं, कही दूर पहाड़ों पर, तुम्हारे पास आके लेट जाऊं.. तुम गले लगा लो.. और मैं सो जाऊं... बस.....

मनु :  क्या कहूं...

राज :-   मुझे अभी तक एक ही बात समझ आई हैं की तुम मुझे पूरा होने का एहसास देती हैं. उसे तृप्ति कहूं या सुकून...

राज:- तुम्हें वह गाना याद है जिंदगी गले लगा ले..

मनु ... हां, तुम्हे वो मेरी पिक याद हैं, जिसको डीपी लगाया था, व्हाट्सएप पर..

राज : हां , बहुत प्यारी फोटो  हैं वो... नेचुरल... रॉ...सूर्यमुखी ने गुलाब सजा रखा था..
मनु   -आ हा हा हा क्या उपमा दी है..

राज: तुम्हारी टी शर्ट का रंग गुलाब सा था और तुम गुलाब सी ..
..गुलाब तुमने लगा रखा था या ओढ़ रखा था...
मेरा मन तुम्हे देख के उड़ के तुम्हारे पास आने को कर रहा हैं..
मन को भंवरा क्यों कहते है , तब समझ आया..

मनु - वह गुलाब कितना सुंदर था ना!

राज: हां बहुत और तुम भी...

मैं तुम्हे ध्यान से देखता हूं... और कविता जन्म लेने लगती हैं मनु..

मनु, हम एक्सपेक्ट नही करते हुवे भी हम एक्सपेक्ट करते चले जाते हैं.. इंसान ही तो हैं..

मनु :-  हां मैं यह समझती हूं..

(कहते सुनते राज और मनु ,पहले की ही तरह पास बैठे और उन्हें कब नींद ने आगोश में ले लिया, या एक दूसरे में समा गए ,पता ही न चला।)


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