अपना घर?
अपना घर?
औरत का अपना कोई घर होता है?
इस सवाल पर कुछ लोगों की उनकी अलग अलग मनस्थिति पर की गयी बातचीत पर आधारित है।
माँ और बाबा अपनी बेटी से : लड़कियां तो पराई होती है। शादी के बाद तो पति का घर ही तुम्हारा घर होगा।
भाई और भाभी शादीशुदा बहन से : यह तुम्हारा मायका है। तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा घर है।
भाई कुँवारी बहन से : यह मेरा घर है। तुम्हें यहाँ मेरे हिसाब से रहना होगा।
पति अपनी पत्नी से : यह घर मेरा है और इसे मैंने अपनी मेहनत के पैसे से बनाया है।
सास और ससुर बहु से : यह घर हमारा है। तुम लोग जब अपना घर खरीद लोगे, तब तुम्हें आटे दाल का भाव समझ आएगा।
बेटा और बहु विधवा माँ से: माँ अभी आप हमारे साथ हमारे घर में रहोगी।
भगवान ने तो औरत के लिए बहुत सारे घर बनाये हैं। जैसे की पिता का घर ,पति का घर ,बेटे का घर।
औरत जो अपना पूरा जीवन उस घर में लगा देती है फिर भी वह घर उसका अपना क्यों नहीं होता?
इस पीड़ा को क्या कोई समझ सकता है?