अनेक
अनेक
तीनों बहनें काफ़ी महीनों बाद मिली थी तो अपना दिल हल्का करने का मौक़ा छोड़ना नहीं चाह रही थी ।उनके मन के अंदर का गुबार धारा प्रवाह बह रहा था।
रोहित को देखो बेचारे को दो लड़कियाँ ही है। मैं तो समझा -समझा के थक गई पर मेरी तो सुनता ही नहीं।बेचारी सुगंधा भी एक बेटा चाहती है पर उसकी भी नहीं सुनता है…”सावित्री जी अपनी बहनों से अपने बेटे रोहित के विषय में अपने आँसुओं को क़ाबू में करते हुए बता रही थी।
बहन गायत्री ने भी सुर में सुर मिलाया-“मैं तो कुछ नहीं बोलती मेरी सुनता कौन है? बेटे बहू ने ऑपरेशन करवा लिया।अब बताओ एक बेटी थी एक और हो जाने देते। भला बताओ वंश कौन चलाएगा ?”
अरे !क्या रखा है बेटा बेटी में अब देख हमारे दो भाई हैं पर एक विदेश में बस गया दूसरा पता नहीं क्यों मुँह फुलाए हुआ है।राखी भेजने पर एक खबर भी नहीं देता कि राखी मिली या नहीं।” तीसरी नेभी अपनी मन की बात कह डाली।
“वो तो भला हो चचेरे भाइयों का कम पढ़े लिखे हैं पर कितना मान जान करते हैं।”
“अरे, रोहित कहाँ जा रहे हो? गुड़िया आती होगी तुम्हें राखी बाँधने।”
“नहीं माँ, दीदी का फ़ोन आया था वो नहीं आ पा रही हैं। दो दिन की छुट्टी थी इसलिए उन लोगों ने कहीं घूमने का प्रोग्राम बना लिया है।
माँ, ये दोनों सुबह से रो रही हैं कि मेरा कोई भाई नहीं है राखी किसे बाँधे ? तो इन्हें मैं अनाथ आश्रम ले जा रहा हूँ। वहाँ इन्हें अनेक भाई मिल जाएंगे।”