परछाईं
परछाईं
पाँच भाई बहनों में तीसरी नंबर पर मैं। तीन बहनें बड़की, मँझली, छोटी और फिर दो भाई। मैं मँझली, साधारण नैन नक़्श और श्याम रंग की स्वामिनी। बचपन से ही हीन भावना से ग्रसित पर हर कार्य में श्रेष्ठ।
पढ़ाई -लिखाई हो या कड़ाई, बुनाई। कोई भी आता माँ बड़े चाव से दिखाती ये देखो मेरी बेटियाँ कितनी गुणी हैं। मेरा वजूद उसमें गौण हो जाता। दीदी और छोटी कनखियों से मेरी ओर देख मुस्कुराकर भाग जाती।
शादी के समय विदा करते समय माँ ने कहा था “देख मँझली जो कुछ सिखाया है, उससे सबका दिल जितने की कोशिश करना। ”ससुराल में भी मँझली बहु के रूप में आई। बड़ी बहु अपने बुटीक में व्यस्त रहती। छोटी भी दूसरे शहर जा कर काम करती शनिवार रविवार को आती तो दोनों देवर देवरानी घूमने फिरने में व्यस्त। पूरे घर का ज़िम्मा, आना जाना सब मैं ख़ुशी -ख़ुशी निभाती। लेकिन ससुराल में भी दो बोल तारीफ के सुनने को लालायित मन अब शांत हो चुका था।
आज मीठी मेरी इकलौती संतान को लड़के वाले देखने आए थे। कानों में मेरी सास के कहे शब्द जल तरंग की तरह मन को तरंगित कर रहे थे-वो कहे जा रही थी “मेरी पोती सर्व गुण संपन्न है। एक से एक खाना बनाने से लेकर कड़ाई बुनाई सब आता है। एकदम गउ है मेरी पोती बिलकुल अपनी माँ की परछाई है। ”