विवाह बंधन
विवाह बंधन
माँ!” ये गुलाब के फूलों वाली साड़ी तुझे पहननी ही पड़ेगी...”मेरी क़सम जो इसे रखा तो...।
“मेरी पहली कमाई का तोहफ़ा है “...समझ गई ना...। ”
नेहा, बचपन से माँ को देख रही थी। जो भी अच्छी साड़ी ख़रीदती या कोई देता उसे जतन से सहेजकर बड़े वाले अलुमिनियम के बक्से में रख देती थी । कहती ये बक्सा तेरा सुहाग पिटारा है। मेरे बाबूजी ने मेरी शादी पर यह बक्सा अपनी साइकिल बेच कर ख़रीदा था।
“हाँ! और क्या मिला नाना जी को और तुम्हें इसके बदले?”
दिवाकर द्वारा तिरस्कार! अपमान और ज़िन्दगी भर की सजा...मुझे पेट में भरकर ...चली आई नानी के पास।
चुप कर! माँ ने डाट कर चुप कराना चाहा।
...क्यों चुप रहूँ ...?
नेहा ने जबसे होश सँभाला
बचपन से ही मामीजी के ताने से उसे समझ में आ गया था कि कैसे माँ को दिवाकर ने दो महीने रखकर घर से निकाल दिया था क्योंकि माँ को पता चल गया था कि दिवाकर की एक रखैल है जिसके गिरफ़्त से निकालना माँ के बस में नहीं। उल्टे माँ पर बदचलन का ठप्पा लगाकर घर से निकाल दिया था। तब से नेहा अपने पिता को दिवाकर के नाम से ही संबोधित करती।
नेहा, शादी के नाम से ही चिढ़ जाती थी लेकिन माँ के जिद के आगे उसे झुकना पड़ा। मामा जी के दोस्त का लड़का था इसलिए माँ और मामा जी आश्वस्त थे। नेहा ने भी अनमने ढंग से हामी भर दी।
विशाल तीन तल्ले के सजे धजे कोठी को देख नेहा अपने भाग्य पर फूली न समा रही थी लेकिन शादी के दूसरे ही दिन संजय ने नेहा को दो टूक शब्दों में बता दिया था “हमारी शादी को बस एक समझौता समझना। माँ, बाबूजी की ख़ुशी के लिए ये सब करना पड़ा। ”
अनु ,”मेरी पहली प्यार थी और रहेगी...उसे मैं धोखा नहीं दे सकता। ”
नेहा ने भी जानना चाहा -“और तुमने मुझे जो धोखा दिया, उसका क्या? उन सात वचनों का क्या? मैं तो अब कहीं की नहीं रही, ग़रीबों की क्या इज़्ज़त नहीं होतीं ?”
नेहा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जज के सामने नेहा ने जब कहा, जज साहब -“अगर आपकी बेटी के साथ ये होता तो आप क्या करते?” ऐसी दलील की शायद जज साहब को भी उम्मीद नहीं थी...
कई तरह की अग्निपरीक्षा को पार करके नेहा को, दो महीने में ही संजय को ऑफिस से नोटिस दिलवाने में कामयाबी मिल गई। नौकरी पर मंडराते ख़तरे और जेल जाने के डर के सामने वासना का अंधा प्यार खोखला साबित हुआ।
सात फेरों का पवित्र बंधन, धैर्य और मज़बूत इरादों से ,नेहा ने अपने हक़ को न सिर्फ़ छीना बल्कि समाज की वैसी महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया जो ऐसी परिस्थिति में टूट जाती हैं, अंधेरे में गुम हो जाती है या हार मान जाती हैं।
नेहा ने अपने प्रेम के मंगलसूत्र से ससुराल में ऐसा पौधा लगाया जिसकी शीतल छाँव संजय को धीरे- धीरे भाने लगा।