कैसी यात्रा?
कैसी यात्रा?
गोविंद जी के मन में हर्ष मिश्रित भाव आ और जा रहे थे। रास्ते में ही ट्रेन में, मनोज बेटे ने यह सूचना दी।वे बेटी के ससुराल से अपने नवजात नाती को देख कर लौट रहे थे। गोविंद जी का मन हवा की तरह उड़ने लगा उड़ कर पत्नी के पास पहुँच गए दुलारी सुनेगी तो उछल पड़ेगी। सीधे अपने नाती के पैर को ही शुभ घोषित कर देगी।
“अरे, दुलारी तेरे मन की मुराद पूरी हो गई आज रजिस्ट्रेशन हो गया, चल अब तैयारी शुरू कर दे…बाबा का बुलावा आ गया…अब तेरा जीवन सफल हो जाएगा। सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होगी…यही कहती थी ना तू!
पाँच साल से सुन- सुन कर मेरे कान पक गए थे। जब देखो तब उलाहना देती फिरती थी।
मनोज का फ़ोन आया था, कह रहा था डॉक्टर से दिखा कर सेहत की जाँच करा कर ही जाना है। ये देख क्या -क्या ले जाना है सबका लिस्ट भेजा है मनोज ने…बहुत कठिन यात्रा है, बाबा बर्फ़ानी अमरनाथ देव की…इतना आसान नहीं जितना तू समझती है…समझीं ना!”
“बहू, मनोज की माँ कहाँ है?” दिखाई नहीं दे रही। गोविंद जी ने पूछा।
“जी, पापा जी सुबह से कह रही थी तबीयत ठीक नहीं लग रही…नाश्ता किया और आराम करने चली गई।”
कमरे में जाकर गोविंद जी ने आवाज़ लगाई “क्या हुआ तबीयत को ? सुना कि नहीं ख़ुशख़बरी?”
प्रत्युत्तर नहीं आया दुलारी जी का क्योंकि वो तो अंतिम यात्रा में निकल चुकी थी।