पानी रे पानी
पानी रे पानी
कल स्कूलों और कार्यालयों (झारखंड) में आदिवासियों का पर्व ‘सरहुल ‘की छुट्टी है। मंगरी बेहदउत्साहित है क्योंकि साल में एक बार ही तो मइया, गइया का दूध नहीं बेचती है। सब के लिए खीरबनाती है। रात भर मांदर के थाप पर नाच गाना होता है। वैसे आजकल मांदर पर बाबू ,चाचा,दादू हीनाचते और बजाते हैं। जवान और बच्चे तो बड़े -बड़े साउंड बॉक्स डी जे पर रात भर नाचते गाते हैं। गाँव तक बिजली जो आ गई थी।
दो साल से टूटे चापाकल की मरम्मत को तरसते गाँव के लोग ,जो दो सौ लोगों के बीच पानी लेनेका एकमात्र सरकारी गवाह मौन खड़ा था। जिसमें से पानी कभी निकला ही नहीं था...सब कहतेगाँव की धरती की छाती सूखी हुई है ...कभी पानी नहीं उतरेगा।
महज़ सरकारी ख़ाना पूर्ति... पाँच फ़ीट गड्डा खोदकर चापाकल गाड़ कर ,तस्वीर खींच कर सरकारीबाबू चले गए थे। उस दिन सभी गाँव वाले कितने खुश थे ...अब गाँव के पानी की समस्या दूर होजाएगी। ...लेकिन...बाबू कहते हैं कि “अब अगले चुनाव के समय ही कुछ हो पाएगा। ”मंगरी इन्हींबातों में खोई ...रिनिया ,टेंगरा के साथ खाली तसला,गगरी (पानी भरने के पात्र)लिए जल्दी -जल्दीकदम बढ़ा रही थी। पानी लेने के लिए गाँव से दो किलोमीटर दूर झरने के पास आ गई...
अरे!ये क्या !”झरने में पानी क्यों नहीं ?”
“अब आगे डेढ़ किलोमीटर पर एक छोटा तालाब है ...वहाँ पानी मिलेगा रिनिया बोली...”
तीनों बच्चे रुआंसे हो गए।
त्योहार में ख़लल पड़ने का अंदेशा सताने लगा। हफ़्ता हो गया नहाए ...सरहुल पूजा में नहा कर नएकपड़े पहनने के उत्साह में पानी फिरता नज़र आ रहा था।
सभी इधर- उधर नज़र दौड़ाने लगे।
टेंगरा चिल्लाया ,”मिल गया...!”
एक गड्ढे के तरफ़ इशारा किया। नीचे तलहटी में कुछ जल दिखे।
तीनों बच्चे कड़ी मशक़्क़त से गमछा भिगोकर फिर उसे निचोड़ कर अपने -अपने तसले में पानी इकट्ठा करने में कामयाब हो गए।
घर लौटते वक्त तीनों के चेहरे पर प्रकृति पर्व का उल्लास साफ़ -साफ़ झलक रहा था।
