Savita Gupta

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छठ पर्व का ऐतिहासिक जुड़ाव

छठ पर्व का ऐतिहासिक जुड़ाव

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महाभारत काल के मान्यता अनुसार छठ पर्व की शुरुआत सर्वप्रथम सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव कीपूजा से शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घण्टों कमर तक पानी में ख़ड़ेहोकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे सूर्यदेव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे आज भी छठ मेंअर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है।कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रौपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है वे अपनेपरिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।कार्तिक और चैत मास में छठ पूजा का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्षहै। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व में बाँस निर्मित सूप,टोकरी,मिट्टी के चूल्हे, गन्ने का रस, गुड़,चावल,गेहूँ के आटे से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन कीछटा देखते ही बनती है। मिट्टी की मिठास लिए यह पर्व दिनोंदिन लोकप्रिय हो रहा है।


शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गयी उपासना पद्धति है इसके केंद्र में वेद,पुराण जैसे धर्मग्रन्थ न होकर 

नये फसल और ग्रामीण जीवन है जिसमें बाँसनिर्माता,कुम्हार,फल ,सब्ज़ी विक्रेताओं का अहम योगदान होता है।छठ पर्व ही एक ऐसा त्योहार है जिसे अमीर -गरीब सब अपने सामर्थ्य अनुसार नियम धर्म से करते हैं।इसमें न विशेष धन कीआवश्यकता है न पुरोहित की।परिवार के लोग,पास-पड़ोस अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहते हैं ।इस उत्सव के लिए प्रशासन,सरकार ,जनता के सामूहिक प्रयास सेनदी,सड़क ,चौराहे,नगरों की सफाई, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबन्धन, तालाब या नदीकिनारे अर्घ्य देने की उपयुक्त व्यवस्था की जाती है.इस उत्सव में नहाय खाए से लेकर अर्ध्यदानतक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह पर्व सामान्य और गरीब जनता अपने दैनिकजीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा-भाव और भक्ति-भाव से अपनों के कुशल क्षेम के लिए करतेहैं ।वर्ष में एक बार सभी चाहें देश के किसी भी कोने में हों या विदेश में एकजुट होकर श्रद्धा औरभक्ति भाव से मनाते हैअब तो विदेशों में रहने वाले हमारे बिहार ,यू पी,झारखंड के बहन भाई वहाँ  भी छठ पर्व धूमधाम से मनाते हैंचार दिनों का यह अनुष्ठान नहाय खाय,से आरंभ होकरखरना,संध्या अर्घ्य और प्रांत: अर्घ्य को जाकर समाप्त होता हैछठ का प्रसाद तो अति लोकप्रिय हैजो आटे,गुड़ और शुद्ध देशी घी में बनता है जिसे लोग माँग कर खाने में भी नहीं हिचकते।सूर्यउपासना में डूबे चहुँओर बस यही सुनाई देता है…छठी मइया खोलि न हो केवड़िया दरश्नवा देही  नाऽऽऽइसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि पारिवारिक अपनापन की मिठास और एकजुटता कामिसाल है छठ पर्व।


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