एल्बम
एल्बम
संगीता जी को राखी के दिन की अपनी तैयारी जब वो अविवाहित थी ताज़ा हो गई। रेशमी धागे से राखी बनाना, सलमा सितारे से सजाना याद आ गया ।जब अचानक एल्बम में अपने इकलौते भाई की कलाई पर वही रेशमी डोर उन दिनों की यादों के रूप में मुस्कुरा रही थी। मुँह में माँ के हाथों बनाई खीर घुलने लगी। राखी की थाली में माँ का पचास रूपया का नोट धीरे से सरकाना। सारा कुछ चलचित्र की तरह मानस पटल पर पसर गए।
आज बरसों बाद माँ के कहने पर संगीता जी मायके आई हुई थी। सारा कुछ समेटने का दायित्व माँ ने उन्हें सौंपा था।सारी यादों को ओ एल एक्स पर बेच कर सूटकेस में तीन एल्बम जो आज उन्हें बेशक़ीमती नज़र आ रहे थे सहेज लिया था।
दरवाज़े पर टैक्सी इंतज़ार कर रही थी। भाई का फ़ोन आ गया “हैप्पी !राखी दी। आपकी ऑनलाइन राखी मिली।