मंगरी
मंगरी
“इस बार महीना मिलेगा ना छौवी त बतइबे..”
माई, फिर छौवी बोली कितना बार बोली हूँ मेरा नाम लेकर पुकारा कर।”
“अच्छा बताओ महीना क्यों चाहिए?”
उउउउउ …”
“बता क्या छुपा रही है माई”
“कुछो नहीं रे अगिला ऐतवार को बाबू तोरे वास्ते लड़का वाला को बुलाए हैं…अउर देख न दू महीनासे सिलेंडर ख़ाली पड़ल हऊ।बरसात भर गैस ही जलावे के पड़ी…।
बेस छौवा है…इंटर लिख रहा है।”
मंगरी, एक लोटा पानी लाव…बाबू की आवाज़ को अनसुना कर मंगरी माई पर बरस पड़ी।
“का हल्ला गुल्ला मचावत हव मंगरी? पानी माँग रहल हई सुनावत नाही…?”
“आप भी तो आँख कान बंद किए हो बाबू !
हम रात दिन काम करके चार अक्षर पढ़ना चाह रहे हैं। बड़की दीदीया का बियाह किए थे न जल्दी …दू साल से घर पर बैठी है ना दू गो को गोदी में लेकर…।” मंगरी ने बाबू को रोते हुए कहा।
बाबू पर बड़की के समझाने का असर हुआ।
इस महीना मंगरी ने सिलेंडर भी भरवाया और साथ ही मैट्रिक का फार्म भी भर दिया। फार्म में मोटे-मोटे अक्षर में मंगला नाम लिख कर मंगरी ने सब मंगल करने की धुन में एक दृढ़ क़दम आगे बढ़ा दिया था।