Find your balance with The Structure of Peace & grab 30% off on first 50 orders!!
Find your balance with The Structure of Peace & grab 30% off on first 50 orders!!

Dr. Anu Somayajula

Abstract

4.5  

Dr. Anu Somayajula

Abstract

ऐसा भी होता है.....

ऐसा भी होता है.....

3 mins
11.8K


प्रिय डायरी,


 ‘लॉकडाउन’ यानी तालाबंदी! प्रतिबंधों की लंबी सूची- अलग- थलग रहो, भीड़ न करो या भीड़ भरी जगहों पर मत जाओ, बिना कारण घरों के बाहर मत निकलो, नौकरी करने वाले घर रहो वगैरह- वगैरह। पर्याय से- बाहर निकलो देखो अगला क्या करता है; मित्रों संग सैर पर निकलो देखो कौन भीड़ इकट्ठी करता है या भीड़ का हिस्सा बनता है (तुम तो एक छोटा सा समूह मात्र हो, भीड़ थोड़े ही हो); आज इतनी खरीदी कर लो जैसे कल से अकाल ही पड़ने वाला है (कितना खाओगे भई)! अब तो ऐसा ही होता है.....


पड़ोसी देश पर आरोप है उसने अपने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की चेतावनी सिर्फ़ अनसुनी ही नहीं की बल्कि उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया। अपने पहले मरीज़ की बात भी छुपाई। विश्व में महामारी फैलाने की पहल भी की। अपनी सीमाएं बंद कीं पर कोरोना को निस्सीम कर दिया। क्या और कितना छुपाया मालूम नहीं, या कहें जो दिखाया बताया गया उस पर विश्वास नहीं। जो भी हो अब इस बात पर बहस छिड़ी है ‘पहले मुर्गी या अंडा’! ऐसा भी होता है.....


सिर्फ ज़रूरी सामान की आपूर्ति होगी, आवाजाही होगी। अब देखो सब्ज़ी की गाड़ियों में ज़िंदा सामान जाने लगा है(आलू प्याज़ की बोरियां बन)। आदमियों के जत्थे दूध बन टांकियों में भर गए हैं, किसी मुकाम पर बह जाने के लिए। पीने का पानी दूर दराज़ इलाकों में पहुंचे ज़रूरी है ज़िंदगियां बचाने के लिए। यहां ज़िंदगियां ही पानी बन कर पहुंच रही हैं अनजान ठिकानों पर। अपने नहीं न सही, किसी और के पैरों की बैसाखी ले कर चलो, पर चलो। अनजान सफर, अनजान डगर, अनजाना डर! ऐसा भी होता है.....


 नाक बंद, नाका बंदी, हाथ बांधो हटो- हटो! ऐसी- तैसी बंदिशों की। लगन महूरत बीत रहा है शादी तो होनी ही है! पंडित मुल्ला एक हुए हैं- ना बाजा होगा ना बाराती झटपट कर दो इंटरनॅट पर शादी। ऊपर वाला भी सहमत है बंद करो मंदिर के पट (भोग लगाना पर मत भूलो, मैं भूखा सो ना पाऊंगा)। विद्या के मंदिर भी हैं बंद –ऑनलाइन पढ़वा दो, ज्ञान बांट दो खुश हो जाएंगे सारे। ऐसा भी होता है.....


 पहले कहा हमसे पैसे लेकर विपदा उपजाई फिर हमारे ही घर भिजवाई। नालिश होगी अब संबंध न जोड़े जाएंगे इन धमकियों के देते- देते वहीं से मंगवाए साधन उपकरण। फिर किया तिरस्कार इन्हीं चीजों का ‘ये सही नहीं है, फॉल्टी हैं’। हम भी भेड़ चाल चले। सब कुछ देख समझ कर भी वही ग़लती कर बैठे। देख कर मक्खी निगली, अब उगली भी नहीं जाती। अपने वैज्ञानिक, संशोधनकर्ता उतने ही सक्षम हैं फ़िर भी! क्या कहें, ऐसा भी होता है.....


आज हम घर बैठे हैं। सड़कों पर आवाजाही कम है, रेलमपेल नहीं है। हवा ख़ुश है, पानी स्वच्छ है, पेड़ों पर हरियाली- ख़ुशहाली है। हम सांसों में हवा भरते हैं ज़हर भरा धुआं नहीं। बच्चों को दिखला सकते हैं तोता, मैना, चिड़िया क्या है। जंगल में मंगल है, आदमी का अब डर नहीं है। शेर, चीता, मोर, खरगोश सारे ही निकल पड़े हैं सैर पर, खुली हवा में सांस लेने को। नदियां अब बहती हैं, गंद बहाती नहीं हैं। एक हमारे कुछ थम जाने भर से ऐसा भी होता है.....



Rate this content
Log in

More hindi story from Dr. Anu Somayajula

Similar hindi story from Abstract