Dr. Anu Somayajula

Inspirational

4.6  

Dr. Anu Somayajula

Inspirational

दीपो ज्योति नमोस्तुते

दीपो ज्योति नमोस्तुते

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प्रिय डायरी,


     आज बचपन के दिन याद आ गए जब घर में पुराने, गुज़रे ज़माने के गीत ग्रामोफोन पर बजाए जाते थे। पुराना सा ग्रामोफोन था भोंपू वाला। फरमाइश पर रिकॉर्ड लगाना, बदलना, सुई रखना और हैंडल घुमाकर चाभी भरना जैसे काम बारी-बारी से हम बच्चे करते। कई-कई बार सुनकर कुछ गाने याद भी हो गए थे। ज्युतिका रॉय, सी.एच आत्मा, सहगल वगैरह- आज की पीढ़ी ने नाम भी शायद ही सुने हों! स्वर्गीय सहगल गाना “दिया जलाओ जगमग जगमग” हम बच्चों का प्रिय हो गया। समझ क्या ख़ाक आता! बस गाने की धुन और अजीब सी आवाज में गाया जाना ही काफी था। हर दीवाली पर शाम से शुरू हो जाते और तब तक लगातार बजाते रहते जब तक पूरे घर आंगन में दिए न लग जाते।

     कई वर्षों बाद टीवी पर इस चित्रपट को देखना हुआ; तब जाकर इस गाने का रोमांच समझ आया। बादशाह के भरे दरबार में, घुप अंधेरे में जैसे ही यह गीत शुरू हुआ वातावरण की शांति, नीरवता ने जैसे सम्मोहित कर दिया। गाने के चरम क्षणों में पहले एक दिया जलता है, फिर दूसरा फिर तीसरा और फिर पूरा दरबार रोशनी में नहा उठता है – मानो ग्रहण के बाद एक साथ सैंकड़ों सूर्य निकल आए हों! तुम इस सौंदर्य का, इस रोमांच का अंदाज़ भी नहीं लगा सकतीं।

     आज “बत्ती गुल” अभियान (मैंने यही नाम दिया है) के आह्वान पर पूरे देश में नौ मिनटों के लिए बिजली से जलने वाले दियों को बुझा देने की बात थी। मेरी कॉलोनी में भी उत्साह पूर्वक इस आह्वान का स्वागत किया गया। सारी बत्तियां बुझा दी गईं। कुछ ही पलें में एक टिमटिमाहट दिखी। फिर एक- एक कर हर बाल्कनी में, हर खिड़की पर दिए की टिमटिमाहट दिखने लगी। लगता था सैंकड़ों तारे उतर आए हैं अपना सौम्य प्रकाश लिए। अनायास याद आ गया बचपन का वो गीत “दिया जलाओ....”।

     आज के इस प्रगतिशील समाज में हमने सुविधा वश या आडंबर वश अलग-अलग तरह के बिजली के बल्ब ही नहीं एलईडी के भी अनेकानेक संस्करण अपना लिए हैं। इनकी अपनी जगह है, अपना महत्त्व है और अनेक फ़यदे भी इस बात को नकारा नहीं जा सकता। परंतु मिट्टी के दिए की बात ही कुछ और है। हमारे यहां चलन है कि जब भी नया दिया लाते हैं, उपयोग में लाने से पहले कुछ देर पानी में सोखते हैं। गीली मिट्टी की सोंधी महक वही जान सकता है जिसने महसूस किया हो।

     मिट्टी, तेल और आग- इन तत्तवों का हमारे जीवन में, हमारे अस्तित्व में क्या महत्व है हम सब जानते हैं। एक बटन दबाकर की गई रोशनी और यत्न से जलाए गए दिए के प्रकाश में अंतर जानना हो तो जलाकर देखो! भारतीय संस्कृति में सुबह शाम पूजा घर में, तुलसी के चौवारे पर दिया जलाने की परंपरा है (अब वहां भी बल्ब जलता है!)। शाम को अंधेरा होते ही दिया जलाकर प्रार्थना करते हैं-“शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपो ज्योति नमोस्तुते”। दीप ज्योति को प्रणाम करने की इस विस्मृतप्राय परंपरा को अपने एवं जनकल्याण लिए पुनः जीवित करें, वर्धित करें। 


                         


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