sushil pandey

Abstract

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sushil pandey

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अच्छा एक बात बताइये दिल पर हाथ रखकर

अच्छा एक बात बताइये दिल पर हाथ रखकर

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हम विश्व गुरु बनने वाले है ऐसा सुना मैने कहीं पर! विश्व गुरू से मै ये समझा कि शिक्षा जगत में हमारा भी कुछ योगदान होगा विश्व स्तर पर शायद।

पर कैसे हो सकता है ? पता है आपको शायद नहीं होगा मै बताता हूं।

इस देश में प्रति वर्ष करीब-करीब 13 करोड़ बच्चे पढ़ाई की शुरूआत करते है यही 13 करोड़ कक्षा- 6 तक पहुँचते -पहुँचते 7•37 करोड़ हो जाते हैं और सरकारी आकड़ों के मुताबिक 11 वीं की परीक्षा में 3•39 करोड़ बच्चे बैठते हैं यही आंकड़े उच्चतम शिक्षा तक पहुंचते-पहुंचते 90 लाख हो जाते हैं कैसे

13 करोड़ से 1 करोड़ भी न बचना कैसे हमें विश्वगुरु के पदवी तक पहुंचा पायेगा और करेंगे भी क्या हम अशिक्षित विश्वगुरु बनकर ?

इसमें सरकार का कोई दोष नहीं है दोषी तो हम है साहब। केवल हम।

अच्छा बताईये कब हमने शिक्षा को सिर्फ ज्ञान के लिए लेने को कहा अपने बच्चों से ?

कब हमने शिक्षा को नौकरी पाने के जरिए से ज्यादा करके आंका हमने ?

हमने कब बिना scope की जानकारी लिए,बच्चे को उसकी इच्छा से चुनने दिया उसका पसंदीदा क्षेत्र अध्ययन के लिए ?

पढने दिया ही कहां हमने बच्चों को, हमने तो खुद ही शिक्षा को नौकरी पाने का एक औजार बना दिया, सच मानिए अगर हमने ऐसा ना किया होता तो श्रीमान मेंडिकल में प्रवेश के लिए करोड़ो का अनुदान न देना पड़ता!

विज्ञान के विद्यार्थीयो को अन्य विद्यार्थियों से काबिल न समझा जाता ?

अच्छा एक बात बताईये दिल पर हाथ रखकर...

कब अंतिम बार हमने सरकार के खिलाफ मोर्चा निकालने की बात भी की थी शिक्षा के गिरते हुए स्तर को लेकर ?

कब हमने विद्यालयों के प्रयोगशालाओं में प्रयोग सामग्री को लेकर प्रधानाध्यापक से बात की थी ?

कब हमने विद्यालयों के पुस्तकालय में पुस्तकों कमी को लेकर शिकायत/सुझाव पुस्तिका में कोई शिकायत दर्ज किया था ?

नहीं न ? आज तक तो शायद कभी नहीं ?

पता है आपको सरकार शिक्षा मुफ्त मुहैया कराती है पर शिक्षको के बिना, प्रयोगशाला के अभाव में, पुस्तक विहीन पुस्तकालय के साथ।

वो देश विश्वविश्वगुरु बनने की बात करता है जिसके हर चौथे कानून बनाने का अधिकार रखने वाले सांसद ने स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं किया है। आज लोकसभा में 146 सांसद ऐसे हैं जिन्होने कॉलेज का मुह नहीं देखा।

देशभर के 4275 विधायको में से करीब-करीब 1300 से ज्यादा तो कॉलेज मतलब नहीं जानते।

हम चुनावो के दौरान सरकारों से सड़क, बिजली, पानी और पेट्रोल मुफ्त चाहते हैं ये सब मिल भी गया तो क्या करेंगे इन सबका अशिक्षित नस्लों के साथ ?

सोचिये जरा जब हमारे पास सड़क और बिजली नहीं थी तो एक गरीब बालक को जागृत कर उससे संसार का सबसे विशाल साम्राज्य स्थापित करा सकने की योग्यता रखने वाले महान शिक्षक चाणक्य थे हमारे पास।

इन सभी सुविधाओं के अभाव में भी नवधर्म संस्थापक गौतमबुद्ध और गुरुनानक थे हमारे पास।

हां इन्ही अभावो में समाज को नई दिशा देने और हमें जंगली समझने वालों को ज्ञान और दिशा देने वाले विवेकानंद और दयानंद सरस्वती थे हमारे पास।

मुफ्त की सुविधाओं की लालसा रखनेवाले हम दे भी कैसे सकते है भारत माता को एक भी ऐसा लाल जो अपने कर्मों से प्रतिष्ठित हो जाये जनमानस में हजारों सालों के लिए !

इन भ्रमित पीढ़ियों को सही मार्ग दिखाने का अधिकार हमें तब होगा जब हम दलों की राजनीति से उपर उठकर कसम खायें की कम से कम मेंरे लिए आने वाले चुनावों में उम्मीदवार को मतदान करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पात्रता उसकी शैक्षणिक योग्यता होगी।

उजाला चरागों से ही हो ये जरूरी तो नहीं।

शिक्षित नस्लें भी रौशनी बेशुमार करती है।।


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