आखरी होली
आखरी होली


आज धूलंडी है। होली पूजन से अगला दिन, जब लोग रंगों से होली खेलते हैं। रंगों में डूब कर मानो सब अलग होकर भी एक से हो जाते हैं। पर सुमन को यह त्यौहार पसंद नहीं है।
ऐसा नहीं है कि उसे बचपन से ही यह पसंद ना हो। 4 साल पहले तक होली उसका मनपसंद त्योहार हुआ करता था। पर अब यह त्योहार उसे सबसे बुरा लगने लगा है। घर वालों के लिए पकवान बनाकर वह अपने कमरे में बैठी टीवी देख रही है। उसका पति आकर उसे रंग लगाता है और होली खेलने के लिए बाहर आने को कहता है। पर सुमन यह कहते हुए मना कर देती है कि "नहीं तुम खेलो ! मेरा मन नहीं है। होली मुझे शुरू से ही अच्छी नहीं लगती।"
उसका पति चला जाता है और वह खो जाती है 4 साल पहले की होली वाले दिन की याद में। सुनील जिसे वह प्यार करती है, उसे फोन करता है और मिलने के लिए कहता है। सुमन मिलने की जगह बता देती है और फोन काट देती है। शाम के 6:00 बजे सुमन अपने ऑफिस से घर जाने के लिए निकलती है। वह बस स्टॉप से बस लेती है पर अपने स्टाप से दो स्टॉप पहले ही उतर जाती है। वहां सुनील उसका इंतजार कर रहा होता है। वह अपना मुंह अपने दुपट्टे से ढक लेती है और सड़क पार करके सुनील के पास जाती है और कहती है, " तुम कब सुधरोगे। कितनी बार कहा है हेलमेट पहनकर आया करो मुझसे मिलने। मुंह पर रुमाल भी नहीं बांधा है कोई देख लेगा तो लेने के देने पड़ जाएंगे। पहले रुमाल बांधों।" (हमारा समाज चाहे आज भले ही कहने को आधुनिक हो गया हो पर प्यार जैसे रिश्ते को आज भी कबूल करने से हिचकता है)
सुमन सुनील की बाइक पर बैठती हैं और दोनों चल देते हैं ऐसी जगह की तलाश में जहां उन्हें कोई देखकर पहचाने नहीं। एक मोड़ पर लाकर सुनील बाइक रोककर कहता है," यही जगह ठीक है। यही कर लो जो भी बात करनी है। वैसे भी तुम 15-20 मिनट से ज्यादा तो रुकोगी नहीं क्योंकि तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त ही कहां होता है।
"
सुमन, "हां जैसे तुम तो मेरे कहते ही सब कुछ छोड़कर मिलने दौड़ पड़ते हो। है ना? 20 मिनट से ज्यादा तो तुम भी नहीं रुक सकते हो।"
सुनील, "क्या लड़ने के लिए ही बुलाया है क्या तुमने?" सुमन," भूल गए मैंने नहीं बुलाया। तुम्हारे बुलाने पर मैं आई हूं तुमसे मिलने।"
सुनील, " एक ही तो बात है। क्या तुम्हारा मिलने का मन नहीं था।"
सुमन, " मन ना होता तो मैं यहां तुम्हारे सामने ना खड़ी होती। समझे ! चलो अब अपनी आंखें बंद करो।"
सुनील , "क्यों? गिफ्ट लाई हो क्या मेरे लिए। "
सुमन ,"हां।"
सुनील आंखें बंद करके खड़ा रहता है कि सुमन के हाथ का स्पर्श अपने चेहरे पर पाकर अपनी आंखें खोल लेता है और पूछता है, " यह क्या है?"
सुमन, " तुम्हें नहीं पता ? होली है।"
सुनील," ये क्यों नहीं कहती कि मेरे साथ यह तुम्हारी आखिरी होली है।"
सुमन अपनी नजरें झुका लेती है शायद सुनील की बात सुनकर अपनी आंखों में आए आंसुओं को छुपाने की कोशिश करती है। फिर एक पल रुक कर फिर मुस्कुरा कर कहती है , "क्या तुम मुझे रंग नहीं लगाओगे?"
सुनील , "क्या फायदा, मेरे प्यार के रंग में तो तुम पहले ही रंगी हुई हो। पर फिर भी एक आखरी बार तुम्हें रंग लगाने का मौका कैसे छोड़ दूं ? पता नहीं फिर कभी यह मौका इस जन्म में मिले ना मिले।" इतना कहकर सुनील सुमन के हाथों से रंग लेता है और सुमन के चेहरे पर लगा देता है।
इतनी ही देर में सुमन को ध्यान आता है कि उसकी सास उसे आवाज दे रही होती है। और वह अपनी भीगी आंखों को आंचल से पोंछकर चली जाती है। वह होली सुमन के मन की आखिरी होली थी। प्रेम के रंगों से रंगी प्रेम की होली। और हो भी क्यों ना आखिर होली है तो प्रेम का ही त्यौहार। राधा और कृष्ण के परिशुद्ध प्रेम का उत्सव। यहां सुमन (राधा) अपने (कृष्ण) सुनील को याद करके अपनी होली मना रही है।