Shelly Gupta

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आखिर कब तक?

आखिर कब तक?

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#साहित्यसंवेदस्टोरीमिररकहानीप्रतियोगिताअप्रैल_2020


कई सालों बाद जब उसकी आवाज़ सुनी तो एकबारगी तो रमा को यकीन ही नहीं आया। ये तो उसकी छोटी की आवाज़ है। पर ये कैसे हो सकता है? उसकी छोटी तो उस से बहुत नाराज़ है। आवाज़ को अपना वहम समझ रमा डबडबाई आंखों से फिर से आटा गूंधने लगी कि एक बार फिर से उसके कानों में आवाज़ आईं," रमा दीदी, पलट कर भी नहीं देखोगी क्या आप अपनी छोटी को?"


इस बार आवाज़ बिल्कुल उसके पीछे से आई थी। रमा झटके से पलटी और आटे की परांत दूर जाकर गिरी। रमा ने परांत की ओर देखा भी नहीं। उसकी आंखें तो बस अपनी छोटी को देखने में लगी थी। आटे से सने हाथों की परवाह ना करते हुए उसने अपनी छोटी को कसकर गले लगा लिया और बार बार उसका मुंह चूमती रोने लगी और कहने लगी," तूने मुझे माफ़ कर दिया ना छोटी। मैं तेरी गुनहगार हूं। बस मुझे एक बार माफ़ कर दे छोटी।"


रसोई में खड़े हर शख्स की आंखों में आसूं आ गए रमा की हालत देखकर और रमा की छोटी भी रोती हुई उसके गले लगी रही और बस " हां दीदी " बोलती रही। बड़ी देर तक उन दोनों को किसी और का होश नहीं था। बस एक दूसरे के गले लगी दोनों रोए और एक दूसरे के गालों और माथे को चूम रही थी। कोई भी उन दोनों के बीच नहीं आया। सबको पता था बरसों का गुबार बंद है दोनों के दिलों में और आज उसके बहने का समय था इसलिए सब उन दोनों को रसोई में ही छोड़ कर बाहर चले गए।


बड़ी देर तक एक दूसरे के गले लगे रहने के बाद रमा और उसकी बहन वीना यानी छोटी, पुरानी बातें याद करने लगी। कितने अच्छे दिन थे वो। रमा दो बहनें और एक भाई थे। रमा सबसे बड़ी और फिर वीना, रमा से तीन साल छोटी और उस से तीन साल छोटा विशाल। बड़ा खुशहाल परिवार था उनका। बेशक बहुत अमीर नहीं थे वो पर खुशी और सुकून से रहते थे सब। रमा और वीना तो जान थी एक दूसरे की। हर कोई मिसाल देता था इनके प्यार की कि बहनों में प्यार हो तो ऐसा हो।


ऐसे में एक दिन रमा के लिए एक रिश्ता आया। रमा अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। रिश्ता भी ऐसे घर से आया जो सबका अच्छे से देखा भाला था,उसके पिताजी के दोस्त के बड़े बेटे राजीव का। पर रमा इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी क्योंकि वो राजीव के छोटे भाई विनय से प्रेम करती थी।


राजीव का रिश्ता आने पर रमा और विनय दोनों बड़े परेशान हुए। उन्होंने अभी तक अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बताया ही नहीं था। दोनों ने बताने की सोची पर इस से पहले ही उनके पिता जी ने सगाई और शादी की तारीख निकलवा दी। दोनों को कुछ समझ नहीं आया तो दोनों ने भाग कर शादी करने का निश्चय किया। उन्हें यकीन था कि थोड़ा डांटने के बाद दोनों के घरवाले इस रिश्ते को स्वीकार कर लेंगे।


पर ऐसा नहीं हुआ। विनय के घरवाले रमा जैसी भाग कर शादी करने वाली लड़की को अपनी बहू मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हुए और ना ही रमा के पिताजी विनय को अपना दामाद मानने को। दोनों परिवारों के रिश्ते हमेशा के लिए खराब हो गए और दोनों ही परिवारों ने उनसे अपने रिश्ते भी हमेशा के लिए तोड़ दिए।


रमा और विनय को अपने जल्दबाजी के कदम का बहुत पछतावा हुआ पर उनकी इस गलती का परिणाम भुगतना पड़ा सिर्फ वीना को, जो अभी कॉलेज के पहले साल में ही थी। पिताजी ने उसकी पढ़ाई अधूरी छुड़वा कर उसकी आनन फानन में ही शादी कर दी ताकि वो रमा की तरह गलत कदम ना उठा सके।


वीना के सारे सपने टूट गए। कहां तो उसकी कॉलेज में लैक्चरार बनने की इच्छा थी पर अपनी बहन के कारण वो अपना कॉलेज भी पूरा नहीं कर पाई। रमा को जब ये पता चला तो वो बहुत रोई और एक बार छुपते छुपाते वीना से मिलने की उसने जब कोशिश की तो वीना की आंखों में अपने लिए नफरत ही नफरत देख उसे खुद से भी नफरत सी हो गई कि कैसी बड़ी बहन थी वो, अपनी बहन की ज़िन्दगी ही खराब कर दी उसने। लेकिन अब वो सिर्फ पछताने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। अपनी बहन और परिवार के दुख का कारण बनने के बाद रमा भी कभी ढंग से खुश नहीं हो पाई। 



ऐसे में अचानक अपने घर में अपनी बहन वीना, उसके पति और अपने भाई को देख रमा खुशी के मारे बस रोई जा रही थी। उसने वीना की तरफ सवालिया निगाहों से देखा तो वीना बोली," मालूम है दीदी कि आपके मन में बहुत सारे प्रश्न घूम रहे हैं। सब बताती हूं आपको। जब पिता जी ने मेरी शादी जबरदस्ती अंश के साथ कर दी थी तो मुझे आपसे नफरत हो गई थी। बड़ा गुस्सा आया था आप पर कि अपने स्वार्थ में आपने मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी। "


वीना की बात सुन रमा ने शरम से सिर झुका लिया। पर वीना उसके मन की बात समझ उसके हाथ को हल्का सा दबाते हुए बोली," मैं उस शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी और बहुत डरी हुई भी थी। पर अंश बहुत अच्छे जीवन साथी निकले। एक दिन सारी बात जानकर उन्होंने मेरी अधूरी छूटी पढ़ाई फिर से शुरू करवा दी और मेरा हर तरह से साथ दिया। और दीदी तुम्हारी छोटी ने अभी कुछ दिन पहले ही बतौर लैक्चरार कॉलेज ज्वॉइन कर लिया है।"


रमा को वीना की बात सुनकर ऐसा लगा मानो मनो टन बोझ उसके दिल से उतर गया हो। उसने बड़े अरसे के बाद चैन की सांस ली। वीना आगे बोलने लगी, "मेरी पढ़ाई पूरी होने और नौकरी शुरू करने के बाद ही एक दिन अंश ने मुझ से और मां पिताजी और विशाल सब से बात की, तुम्हें माफ़ करने और फिर से परिवार में शामिल करने की। मेरा भी अब दिल करने लगा था तुमसे मिलने का और विशाल तो बेचारा घर में हंसी देखने को ही तरस गया था। अंश की बात कोई ठुकरा नहीं पाया और नतीजा आज तुम्हारे सामने है।"


रमा वीना की बात सुनकर फिर से रो दी पर इस बार उसके आसूं खुशी के थे। अभी वो कुछ बोलती कि उस से पहले ही रसोई के दरवाज़े को खटखटा कर विनय, अंश और विशाल अंदर चले आए और बोले," अगर बहनों की बात पूरी हो गई हो तो कुछ चाय नाश्ते का इंतजाम हो जाए ।"


रमा ने अंश के आगे हाथ जोड़ दिए कि उसके घर में खुशियां वापिस लाने वाले वही तो थे। जवाब में अंश ने भी मुस्कुरा कर हाथ जोड़ दिए और पीछे से विशाल आकर दोनों बहनों के साथ गले लग गया और बोला," अब मेरी भी बारी है।" तीनों भाई बहन एक दूसरे के गले लग गए और फिर से रो दिए कि बड़े दिनों बाद ये दिन उन्हें नसीब हुआ था। उन्हें देख विनय और अंश की आंखें भी भर आईं थीं।


विनय सबके लिए चाय चढ़ाने लगा तो रमा बोली," रुकिए। आप लोग अंदर चलिए, हम दोनों बहनें ही काफी हैं रसोई के लिए।" सब अंदर चले गए तो रमा वीना से बोली," आज मेरे मन को थोड़ी शांति मिली है वरना मैं जी तो रही थी पर हर सांस एक बोझ लगती थी। जितनी बार भी पिछली बातों पर गौर करती थी तो गुस्सा आता था खुद पर कि क्या मैं अपना प्यार भूला नहीं सकती थी तुम सबकी खुशी के लिए। पर एक बात पूछूं वीना? क्या वाकई सिर्फ मैं गलत थी? मेरी मर्ज़ी जाने बिना मेरा रिश्ता तय करने के लिए मां पिताजी दोषी नहीं थे? जब उन्होंने मुझे पढ़ा लिखा कर समझदार बनाया था तो मेरी ज़िन्दगी का फैसला करने से पहले उनका मुझसे बात करना तो बनता था ना।"


वीना बोली, " हां दीदी, बिल्कुल बनता था। उनकी यही गलती तो आगे और बड़ी गलतियों का कारण बनी और दोनों परिवारों के दुख का भी। पता नहीं हमारा समाज आखिर कब इतना आगे बढ़ेगा कि बच्चों को अपनी ज़िन्दगी के फैसले खुद लेने देगा और उनके फैसले खुले दिल से स्वीकारेगा भी। पर अब वक़्त खुशियों को आगे बढ़कर अपनाने का है, इन बीती बातों को सोचने का नहीं"।


और दोनों बहनें हंसकर चाय की ट्रे तैयार करने लगीं।



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