असली अवॉर्ड
असली अवॉर्ड
"और मैंने तय कर लिया कि क्या करना है मुझे बड़े होकर। मैं भी अपनी नेहा मैम की तरह बनूंगी।" नन्ही दिया के इतना कहते ही स्कूल में मौजूद सभी बड़े और बच्चे ज़ोर से तालियां बजाने लगे और फिर प्रिंसिपल मैम ने नेहा मैम को स्टेज पर बुलाया और उन्हें साल की सर्वश्रेष्ठ टीचर का अवॉर्ड दिया। नेहा की खुशी से आंखें छलछला गई और वो सबको धन्यवाद देती हुई स्टेज से उतर गई और खो गई पिछली यादों में।
एक छोटे से गांव की थी नेहा और बचपन से ही उसे पढ़ाई का बहुत शौक था। पर उनका गांव बहुत पिछड़ा हुआ था इसलिए गांव में सरकारी स्कूल होने के बावजूद कोई अच्छा टीचर आकर पढ़ाने को राज़ी नहीं होता था। और जो पढ़ाने आते थे वो बस खानापूर्ति सी करके चल जाते थे। कई बार नेहा ने अपने बाबा को कहा कि उसे पास वाले गांव के स्कूल में डाल दें पर तब बेटी को पढ़ाने का रिवाज़ ही उनके गांव में नहीं के बराबर था उस पर दूसरे गांव में भेजकर पढ़ाने का तो सपने में भी नहीं सोचा जा सकता था। बड़ी दुखी रहती थी नेहा इस कारण।
उन्हीं दिनों नेहा के स्कूल में एक नई टीचर आई, सुलोचना मैम। देखन
े में बड़ी सख्त लगती थी वो इसलिए बच्चे उनसे डरे रहते थे। पर उनके पढ़ाने का ढंग बहुत ही अच्छा था। पूरे दिल से पढ़ाती थी वो। जिस कक्षा में गिने चुने ही बच्चे आते थे, धीरे धीरे उसमें बच्चों की उपस्थिति की संख्या बढ़ती गई। सब बच्चों के मुंह पर और दिलों में कोई नाम होता था तो वो था सुलोचना मैम का। तब नेहा को समझ आया कि एक अच्छा टीचर क्या होता है और उसी दिन उसने ठान लिया था कि वो भी बड़े होकर टीचर बनेगी, बिल्कुल अपनी सुलोचना मैम जैसी। और उसे सबसे ज्यादा खुशी तब होगी जब वो भी किसी नेहा की ज़िन्दगी में सुलोचना मैम बन सके।
नेहा ने खूब मेहनत की और एक दिन टीचर बन ही गई। उसने अपनी पोस्टिंग अपनी इच्छा से गांव में ही ली और उसने खूब दिल से पढ़ाना शुरू किया। उसका नतीजा उसके सामने था। उसकी बरसों की चाहत आज दिया की तारीफ ने पूरी कर दी। यही उसका असली अवॉर्ड था। जो रास्ता कभी उसे सुलोचना मैम ने दिखाया था वो उस पर चलने में सफल रही थी। आज फिर नेहा ने दिल ही दिल में सुलोचना मैम को धन्यवाद दिया और अपना अवॉर्ड संभाल कर रख वो अपनी अगली कक्षा लेने चल दी।