खुशियों के रंग
खुशियों के रंग
उसका आना मेरे लिए ज़िन्दगी की एक नई शुरुआत थी। बहुत पसंद नहीं आई थी वह जब मुझे पहली बार मिली थी मेरी सबसे प्यारी सखी रमा की दूर की भतीजी नेहा, जो जाने क्यों मुझे खास पसंद नहीं आई । पर अब चूंकि उसे रमा ने भेजा था मेरी नई किराएदार के तौर पर तो मैं उसको मना भी नहीं कर सकती। आखिर इतना तो मैं कर ही सकती थी मैं रमा के कहने पर। सो मैंने नेहा को अपने यहां किराएदार रख लिया। शुरू में ही मैंने उसे समझा दिया था कि मेरे घर के कुछ रूल्स और रेगुलेशंस है जो उसे मानने पड़ेंगे।
नेहा ने फट से हामी भर दी थी ।उसकी इतनी फटाफट से हामी भरने से मैं थोड़ी सशंकित तो थी पर मेरे पास कोई और चारा भी नहीं था। अगले ही दिन नेहा किराएदार बनकर मेरे घर आ गई।
कुछ ही दिन में वो मेरे पति नवीन और बेटे राहुल और बेटी आभा से घुलमिल गई। ऐसा लगता ही नहीं था जैसे वो इस घर में नई हो पर उसका इतना अपनापन मुझे कहीं ना कहीं खटकता रहता था। मुझे लगता था कि मेरे बेटे राहुल को फंसाने के लिए ही वह हमसे इतना अच्छा बर्ताव करती है और यह समझ में आने के बाद तो मेरा बर्ताव उससे और भी रुखा हो गया था। मैंने अक्सर उसके खिलखिलाते चेहरे की हंसी को मंद पड़ते देखा था अपने बर्ताव के बाद, पर एक मां का दिल अपने बेटे के लिए ज्यादा चिंतित था।
नेहा मेरा व्यवहार देख मुझसे कम ही बात करती थी। घर के बाकी लोगों से वह अच्छे से घुलमिल गई थी और मुझे देखते ही वह बहाने से अपने कमरे में वापस चली जाती थी। एक दिन आभा सुबह सुबह घबराई हुई मेरे पास रसोई में आई और बोली," मम्मी नेहा सुबह-सुबह पता नहीं कहां चली गई। उसका फोन भी ऑफ आ रहा है।"
यह सुनकर मुझे बड़ा गुस्सा आया। मैंने तुरंत रमा को फोन लगाया । मैं तो नेहा को घर से निकालना ही चाहती थी और इस से अच्छा मौका क्या मिलता। रमा को फोन लगाकर मैंने बोला,"रमा, यह किसको मेरे यहां किराए पर ठहरा दिया तुमने। पता नहीं सुबह सुबह बैठे-बिठाए कहां गायब हो गई और अब फोन भी बंद आ रहा है। तुम बताओ एक जवान लड़की की जिम्मेदारी मैं ऐसे कैसे उठाऊंगी।"
मेरी बात सुनते की रमा के मुंह से एक बड़ा सा ओह निकला और वो बोली," अरे ये क्या, मुझे लगा था तुम्हारे भरे पूरे परिवार के बीच में रहकर शायद इसका गम कुछ हल्का हो जाए पर लगता है ऐसा नहीं हुआ। मैं तुम्हें पहले ही बता देती पर नेहा ने मुझे अपनी कसम देकर मना किया था। आज के ही दिन 1 साल पहले नेहा का पूरा परिवार एक एक्सीडेंट में खत्म हो गया था।नेहा कॉलेज गई हुई थी इसलिए सिर्फ वही बची। उसे अकेले उस घर में कैसे रहने देती इसलिए उसे अपने घर लाने लगी थी मैं
पर वो नहीं मानी। फिर मैंने उसे तुम्हारे यहां किरायेदार बना दिया क्योंकि मुझे पता था तुम्हारा परिवार उसको इतना अपनापन देगा कि वह अपना दुख भूल जाएगी पर लगता है ऐसा नहीं हुआ। पता नहीं कब तक उसकी किस्मत में अकेले दुख झेलना लिखा है। तुम परेशान मत हो। वो इतनी समझदार है कि कोई गलत कदम नहीं उठाएगी। बस जब रोकर उसका जी हल्का हो जाएगा तब वह घर वापस आ जाएगी। "
बहुत धक्का लगा मुझे रमा की बात सुनकर और अपने सारे बर्ताव को याद कर बड़ी शर्मिंदगी भी हुई। अब मेरे पास नेहा के इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं था।
रमा के कहे मुताबिक नेहा शाम को घर वापस आ गई। आधे ही दिन में ऐसा लग रहा था कि मुंह उतर गया हो बेचारी का।मुझे देखते ही वो सकपका गई और बोली," सॉरी आंटी, मुझे पता है मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था पर अचानक से ही एक दोस्त ने अर्जेंट काम के लिए बुला लिया था। आगे से ऐसा नहीं करूंगी।"
मैंने उसकी बात सुनकर कुछ नहीं कहा और आभा को आवाज़ देते हुए कहा," आभा, इसके लिए खाना ला पहले। बाकी बात तो इससे मैं इसके खाना खाने के बाद करूंगी।"
मेरी बात सुन नेहा कुछ नहीं बोली और चुपचाप खाना खाने बैठ गई। उसने जल्दी जल्दी खाना खाया और मुझे देखने लगी। मैंने उसके पास जाकर उसे गले से लगा लिया और बग़ैर कुछ बोले उसके बालों में हाथ फिराने लगी। एक पल को तो नेहा हक्की बक्की रह गई पर फिर ज़ोर ज़ोर से हिचकियां लेकर रोने लगी। मैंने उसे जी भर कर रोने दिया। बहुत देर बाद वो शांत हुई। उस रात मैं उसके साथ ही सोई। अगले दिन सुबह नेहा के चेहरे पर इतनी खुशी और सुकून था कि मेरे मन में उसके लिए बहुत सारा प्यार उमड़ आया।
साल भर पहले ही नेहा मेरे राहुल की दुल्हन बनकर हमेशा के लिए हमारे घर की हो गई। आभा की शादी में सारा घर उसने है संभाला था और आभा के जाने के बाद उसकी कमी भी सिर्फ वही पूरी करती है। अब भी मुझे तकरीबन रोज़ चिढ़ाती है कि मम्मी को तो मैं पसंद ही नहीं थी और मेरे बुरा मानने पर मुझसे बच्चों की तरह लिपट जाती है।
मैं भी उसके बचपने को देख कर खुश हो जाती हूं। आखिर राहुल के लिए उसे मैंने ही तो पसंद किया था। जब कभी रमा से बात होती है तो मैं उसका शुक्रिया जरूर करती हूं नेहा को मेरे घर किरायेदार बनाने के लिए। अगर वो ऐसा ना करती तो आज मेरे घर यूं खुशियां ना बरसती। राहुल और आभा मुझे अक्सर कहते हैं कि आपको नेहा हम सबसे ज्यादा प्यारी है और मैं भी हंस के आराम से कहती हूं,"हां ,वो सिर्फ मेरी नेहा जो है।" और फिर सबके हंसी की आवाज़ ज़िन्दगी में खुशियों के रंग बिखेर देती है।