बावरी
बावरी
हल्की बूंदाबांदी में शीतल नदी के पानी में पैर लटकाए बैठी थी। तभी अमर भी उसके पास आ गया और बोला," क्यों भीग रही हो? चलो वहां पेड़ के नीचे।"
शीतल ने उसे खींच कर अपने बाजू में बैठा लियाैर बोली," शशश! सुनो, जाता ध्यान से सुनो। ये टप टप करती बारिश की बूंदें कितना मधुर संगीत सुना रही हैं। टप, टप , टप क्या लय है इनकी। "
तभी उसे आम के पेड़ से कोयल के कूकने की आवाज़ सुन जाती है और वो उसकी नकल उतारने लगती है। उसकी बातें सुन और हरकतें देख अमर हंस पड़ता है और बोलता है," पूरी बावरी हो तुम भी। मुझे नहीं सुनता इन बारिश की बूंदों का संगीत। चलो अब यहां से वरना जुकाम हो जाएगा"।
बावरी शब्द सुन शीतल को गुस्सा आ गया। पैर पटकती हुई वो उठी और रूठ कर बोली," वहां पेड़ के नीचे नहीं जा रही मैं, तुम्हारी ज़िन्दगी से ही जा रही हूं। क्यों खराब हो तुम्हारी ज़िन्दगी भी एक बावरी के साथ?"
और ये कहकर उसने कदम आगे जैसे ही बढ़ाया , अमर ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपने पास खींच लिया और बोला, " हम्म, अब तो आदत पड़ गई इस बावरी की सो ज़िन्दगी तो इसके साथ ही गुजारनी पड़ेगी", और ये कहकर खूब सारी खट्टी इमली जेब से निकालकर उसने शीतल के हाथ में रख दी।
इमली देखकर शीतल सब भूल गई और चटखारे लेकर खाते हुए बोली," सुनो, वो बारिश की बूंदें जब टीन पर पड़ती हैं तो नाच उठती हैं ना।" और अमर उसके चेहरे पर बारिश की बूंदों को नाचते देखता रहा।