सुकून
सुकून


"क्या हुआ मोहित, किस सोच में डूबे बैठे हो?", रीवा ने मोहित, ऋषभ और नैना के साथ बैठते हुए उससे पूछा।
"दो दिन से भैया से बात करना चाह रहा था पर वो इतने बिजी हैं कि उनके पास किसी के लिए बिल्कुल भी वक़्त नहीं है । समझता हूं उनकी परेशानी को पर साथ ही साथ ये सोच के डर लगता है कि हमारा भी तो ये आखिरी साल चल रहा है। उसके बाद हम भी नौकरी करने लगेंगे तो मेरा हाल भी भैया जैसा ना हो जाए।ऐसी ज़िन्दगी नहीं चाहता मैं कि हर पल बस या तो भागता रहूं या फिर रिटायरमेंट का इंतजार करूं। बस इसी सोच में था कि कोई रास्ता तो होगा", मोहित बोला।
उसकी बात सुनकर सब सोच में पड़ गए। फिर ऋषभ बोला," बात तो तुमने बिल्कुल सही कही है। ऐसा करते हैं कि अभी हमारे पास समय है सोचने का। आराम से सब मिलकर कोई रास्ता ढूंढने की कोशिश करते हैं जो सबकी पसंद का हो और हम खुल कर जी भी सकें।"
सब मिलकर रोज नई प्लांनिंग करते फिर खुद ही रिजेक्ट कर देते। पर इस दिन चाय की गुमटी पर नैना के आईडिया ने सबकी आंखों में चमक ला दी। उन्होंने मिलकर एक अलग तरह का रेस्टोरेंट खोलने का सोचो जो कि सिर्फ रेस्टोरेंट नहीं बल्कि लाइब्रेरी के साथ हो।जहां जो आए कुछ पल सुकून के बीता कर जाए।
पढ़ाई पूरी होते ही उन्होंने अपने सपने में रंग भरने शुरू कर दिए और अपने रेस्टोरेंट का नाम रखा ' सुकून '। शुरू में धीमा ही सही पर उनका काम सबको धीरे धीरे अपनी ओर खींचने लगा था। भाग दौड़ की ज़िन्दगी में उनका सुकून सबको सुकून के पल देता था और आज उनके रेस्टोरेंट की चेन की अगली कड़ी जुड़ने जा रही थी। हर बार की तरह मुहूर्त के बाद सबने एक दूसरे के हाथ पर हाथ रखा और फिर चाय का कप उठा कर एक दूसरे के साथ चीयर्स की और कुछ पल सुकून से बैठ एक दूसरे के साथ पुराने जमाने की यादें ताज़ा करने लगे।