अपना हाथ जगन्नाथ
अपना हाथ जगन्नाथ


"जाने कब सरकार हमारी दरख्वास्त सुनेगी?, छोटी सी नदी ही तो हमारे जीने का सहारा है। वो भी कूड़े और पॉलीथीन से अटी पड़ी है। पर हम ठहरे गांव वाले, भला सरकार हमारे बारे में क्यों सोचने लगी", पंचायत में भीमा ने पानी की किल्लत से परेशान होकर कहा।
सब उसकी हां में हां मिलाने लगे। पर पंचों में इस बार सुनील भी शामिल था जो कि इस गांव का अब तक का सबसे छोटी उम्र का पंच था। गांव की बेहतरी के लिए इसी साल से एक युवा खून को पंचायत में शामिल करने का फैसला किया गया था, वो भीमा की बात से सहमत नहीं था।
उसने भीमा से पूछा," चाचा, बुरा ना मानो तो एक बात पूछूं। ये नदी को गन्दा करने क्या सरकार यहां आईं थीं जो हम सारा ठीकरा सरकार के सिर पर फोड़ दें। ये हमारी गलतियों का नतीजा है और अगर हम चाहे तो अपनी गलती धीरे धीरे सुधार भी सकते हैं और वैसे भी कहावत तो आप सबकी सुनी हुई ही है कि अपना हाथ जग्गनाथ "।
एक बार तो सुनील की बातें सुन सब चुप हो गए पर फिर सब एक साथ उसकी हां में हां मिलाने लगे। सुनील के जोश ने सबमें जोश भर दिया था। सबने वहां मिलकर तय किया कि क्या, कैसे करना है और अगले दिन से ही काम चालू कर दिया गया।
आज महीने भर की कड़ी मेहनत के बाद नदी को कूड़े से मुक्ति मिली और वो भी इठलाती हुई लग रही थी। सबके चेहरे पर अपनी जीत की खुशी थी और सबने आगे से कूड़ा ना फ़ैलाने की सौगंध खाई। सुनील की बात बिल्कुल सही थी कि हर वक़्त दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।