ज़िन्दगी और उम्मीद…
ज़िन्दगी और उम्मीद…
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ये दुनिया कितनी ख़ूबसूरत रही होती
अगर मज़हब की दीवारें नहीं होती
क्यूं छोड़ के चले गए अचानक मुझ को
कुछ मेरी सुनी होती, कुछ तो कही होती
ये तमन्ना है कि तुझ से फिर मिल पाऊं
तेरे दिल में भी यही बात रही होती
तभी समझते तुम मेरे दिल की हालत
अगर मेरी तरह जुदाई सही होती
बा-उम्मीद रह कर ही जिया जाता है
बे-उम्मीदी भरी कोई ज़िन्दगी नहीं होती...!