ज़िल्ल्त
ज़िल्ल्त


मैं रोटी नहीं कमाता
ज़िल्ल्त कमाता हूं
दुत्कार और फटकार की
थाली में खाता हूं
मैं रोटी नहीं कमाता
ज़िल्ल्त कमाता हूं
दुत्कार और फटकार की
थाली में खाता हूं
मेरे माँ -बाप भी
आज़िज़ आ गए मुझसे
मेरे भाई - बहन भी
अब उकता गए मुझसे
मैं अपने बीवी -बच्चों की
लानत की खाता हूं
मैं रोटी नहीं कमाता
ज़िल्ल्त कमाता हूं
दुत्कार और फटकार की
थाली में खाता हूं
कुछ मुस्कुराहट मेरी
सबके दिल जलाती है
इतने पर भी मुझे
कहाँ शर्म आती है
मेरी आँखों में सूअर का बाल है
ऐसा सब कहते है
मेरे यार दोस्त भी
मेरी चुगली लगाते है
फिर भी मैं सबको
अपने गले लगाता हूं
मैं रोटी नहीं कमाता
ज़िल्ल्त कमाता हूं
दुत्कार और फटकार की
थाली में खाता हूं
मैं निकम्मा हूं
नक्कारा हूं
हरामखोर भी मैं हूं
जो जैसा समझा सके
वही मुँह
ज़ोर भी हूं मैं
सबके आँसू भी देखकर
मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
अपनों का लहु पीकर भी
मुझे कुछ अखरता है
शायद अभी बहुत कुछ ऐसा है
जिससे मेरा पेट न भरता है
इतने पर भी न मैं
बिलकुल इतराता हूं
मैं रोटी नहीं कमाता
ज़िल्ल्त कमाता हूं
दुत्कार और फटकार की
थाली में खाता हूं
कोई कुछ समझे
कोई कुछ जाने
मेरे अपने भले ही
मुझे दुश्मन क्यों न माने
मुझे किसी से शिक़वा नहीं
किसी भी बात का
हर शख़्स से मेरा रिश्ता है
भले हो वो कोई
किसी भी मज़हब
किसी भी जात का
सबने मुझे दिया है
मैं न दे सका
किसी को कुछ
शायद मेरी बेशर्माइ है
जिससे मैं सबको लुभाता हूं
मैं रोटी नहीं कमाता
ज़िल्ल्त कमाता हूं
दुत्कार और फटकार की
थाली में खाता हूं
आचार्य अमित