यूँ मिलोगी एक खबर बनकर..
यूँ मिलोगी एक खबर बनकर..
तुम उस पल साथ थी,
जब दोस्ती शब्द से,
बेइंतहां नफ़रत हो गई थी,
लगता था जैसे हर रिश्ता,
बस धोखा है, असल में..
कोई किसी का नहीं होता,
भरोसा करना गुनाह है,
किसी से निःस्वार्थ होकर,
दोस्ती करना अपराध है।
कोई आपको कब खास से,
आम कर दे, पता नहीं होता,
कुछ टूटा था भीतर और तुमने,
मैं साथ हूँ , कह कर समेटा था,
हाँ तुम साथ थी हर पल मेरे,
अपने वादे के अनुसार,
फिर कुछ यूँ बिछड़ी कि,
खो-सी गई कहीं,
कई बार सोचती थी,
कभी तो कहीं तो मिलोगी,
लेकिन तुम.....
यूँ मिलोगी एक खबर बनकर,
सोचा नहीं था......
आज फिर कुछ टूटा है,
तुम्हें खोने की तकलीफ़,
मुझे तोड़ रही है,
बताओ तुम ही जरा,
अब कौन समेटेगा भला,
उन किरचों को जो,
कहीं चुभ रही हैं बेइंतहां।
