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Devendraa Kumar mishra

Tragedy Others

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy Others

यथार्थ

यथार्थ

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बस पीड़ा ही सत्य 

सुख तो एक आभास 

वो भी क्षणिक 

जैसे नाग माणिक 

मिल नहीं सकता, सुनते हैं 

पीड़ा निरंतर, अनगिनत अपरम्पार और बेहिसाब 

मक्कार महाजन का हिसाब 

खत्म नहीं होता मृत्यु तक 

चुकाती है अगली पीढ़ी 

क्षण भर विश्राम को 

पीड़ा ठहरती खुशी में 

लगा दीवाली आई 

मगर ये क्या 

संघर्ष फल 

तरह तरह के नाम 

सब पल भर, फिर क्या हुआ 

दरअसल आभास अंत और पीड़ा तुरंत 

खुशी मिलती नहीं धरोहर 

दी जाती है, ली जाती है 

किसी बात पर हंसी, लगा खुशी 

पीड़ा तो यूँ भी मिल जाती है 

महंगाई में, तन्हाई में 

धरती पर दानव, मानव क्या 

राम भी आकर रोये 

जानवरों को कौन पूछता है 

बिकते, कटते बिन इच्छा देखे 

स्वयं धरती भी रोई, फसल बोई, ओले पड़े 

मुरझाई 

आंसू कभी कभी ऐसे भी आ जाते 

धूल से, फूल से 

इच्छा से न कर भिक्षा 

और पीड़ा से कर क्रीड़ा

न रख आस, कैसी निराशा 

चलते रहो हर क्षण 

गिरकर हंस, फिर बढ़ 

भाग मत समस्या से, जूझ जीवन से 

पीड़ा तो रहेगी आभास तक 

खलेगी अंतिम साँस तक। 



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