यह प्रीत
यह प्रीत
बिन राधा के कृष्ण अधूरा
अधूरा तुम बिन मैं,
हसके लेकिन कैसे गुजारूं
तुम बिन दिन अब मैं।
तुम्ही हो शाम ज़िन्दगी की
तुम्हीं हो सवेरा
हद से ज़्यादा प्यार करू मै
पर यह आये ना तुझको गंवारा।
न प्यार काम आया
न वफ़ा काम आइ
समजाने में आपको
न यह कायनात साथ आई।
लोग क्या बोलेंगे-सोचेंगे
उसमें वक़्त बिगाड़ा
ज़िन्दगी जो ले के आई थी
उसको न कभी संभाला।
मिलूंगा मैं वही तुमको
जहां छोड़ दिया है तुमने
पर शायद वैसा न मिलूँ
जैसे छोड़ दिया है तुमने।
गुस्ताखी नहीं थी बिल्कुल
वह तो प्रीत थी मेरी
चाह थी मेरी, राह थी मेरी
तुम्हीं तो ज़िन्दगी थी मेरी।
आओ ना आओ तुम,
हम तो अब जी लेंगे
गम और खुशियों के
सारे आँसू पी लेंगे।
वफ़ा करते रहेंगे हम,
चाहे कितने तूफान आये
यादें तेरी मिटेंगी नहीं,
फूल जीवन में उसी से खिलेंगे।