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समझ नहीं आता

समझ नहीं आता

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महबूबा कहूॅं या मोहतरमा तुझे, समझ नहीं आता

प्यार तुमसे क्यों करता हूँ इतना, समझ नहीं आता

रास्तो पे चलते वफ़ा की, ठोकरे इतनी हमने खायी

फिर भी कैसे भुलाऊॅं तुम्हें, समझ नहीं आता...


मोल नहीं होता मोहब्बत का, यह हम जानते है

तुम्हें ही खुदा अपना, तुम्हें भगवान हम मानते है

शायद, एक दिन तो समझोगी तुम मेरे प्यार को

दिल से तुम्हें चाहते है कितना, यह हम ही जानते है...


तमन्ना है दिल की के सारे जहाँ की खुशियां तुम्हें दे दूॅं

किसी को न मिली हो यहाँ इतनी मस्तियां तुम्हें दे दूॅं

कैसे करू यह सब, कैसे समझाऊॅं तुम्हे मेरा प्यार 

तुम्हारे आंसू ले कर, अपनी सारी हॅंसी तुम्हें दे दूॅं...


चाहता हूँ आज तुम्हें, चाहता रहूँगा ज़िन्दगी भर

मेरी चाहत पे भले ही अभी तू ऐतबार न कर

पहली बार हुआ है प्यार ज़िन्दगी में तुम्ही से

परवाह नहीं गम दे, पर मुझसे तू नफरत ना कर...


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