ये है वर्तमान
ये है वर्तमान
आजकल किसी पर भी पर्दा नही पड़ा है
पहले सब हमाम में निर्वस्त्र होते थे
अब हमाम का भी दरवाज़ा खुला देखा है,
पहले बातों पर भी पर्दा पड़ा होता था
ज़रा इस सदी का चलन देखिए
अब शब्दों के चयन से भी हाथ झड़ा देखा है,
याद किजिए एक वो समय था
जब रिश्ते दिल से निभाए जाते थे
अब रिश्ते/दिलों के बीच में विरोध को खड़ा देखा है,
हमारे समय का जो समय था
उस समय चचेरे/ममेरे शब्द पर शर्म आती थी
अब तो कज़न शब्द को गर्व से बड़ा देखा है,
कितने बेतकल्लुफ़ थे वो दिन
कैसे बेधड़क घुस जाते थे किसी के भी घर में
अब तो पूछने पर भी बहाना सड़ा देखा है,
बड़ों का कहना मानना कर्तव्य होता था
इंकार करना बेअदबी में आता था
अब तो बच्चों को भी अपनी बात पर अ
ड़ा देखा है,
कितने अदब से बुजुर्गों के विचार सहेजे जाते थे
बात - बात पर उन्हीं से राय ली जाती थी
अब तो उनको लाचार सा बिस्तर पर पड़ा देखा है,
एक ज़माने में प्रेम का एहसास आत्मा तक होता था
बिना कहे सुने आपस में हर बात समझ आती थी
अब तो प्रेम में भी भरपूर स्वार्थ जुड़ा देखा है ?
संबंधो से लेकर प्रकृति तक सब बेज़ार हो गये हैं
इनके इलाज में कहीं कोई कमी रह गई है
अपनों और पत्तों को बेवक्त झड़ा देखा है,
कहते हैं कि ये ग़ज़ब की इक्कीसवीं सदी है
हर बात यहां उदाहरण के तौर पर रखी है
फिर भी तो बीते समय से ही भाग - गुणां देखा है
फिर भी तो बीते समय से ही भाग - गुणां देखा है।