STORYMIRROR

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

4  

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

यदि

यदि

1 min
330

यदि ये यदि की नदी न बहती तो 

आज धरती कुछ और ही होती 

यदि की आड़ में सबने अपने अपने को छिपाकर 

राष्ट्र को गर्त में धकेल दिया और यदि कहकर बचाते रहे स्वयं को 

यदि शान्तनु का हृदय न आता सत्यवती पर 

यदि भीष्म दृण प्रतिज्ञा न करते 

यदि धृतराष्ट्र पुत्र मोह में अंधे न होते 

यदि कुंती पहले अपना लेती कर्ण को 

यदि दुर्योधन का रिणि न होता कर्ण 

यदि युधिष्ठिर न खेलते चौसर 

यदि ये यदि न होता तो कितना कुछ 

स्पष्ट होकर टकराव और बिखराव से बच जाता 

यदि की ओट में अपने अपने पाप 

अपनी अपनी पीड़ाएं, अपने अहम, अपने रिण, अपने मोह, अपनी वचन बद्धता से न बंधते 

तो धर्म, न्याय, सत्य के लिए महाभारत की आवश्यकता ही नहीं होती 

तुम्हारा ये जो यदि है 

रक्त से बहती नदी है 

अपने यदि से बाहर निकलो 

और भारत की बात करो 

तुम्हारा यदि राष्ट्र के लिए घातक है. 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy