याद तो तुम मुझे बहुत आये
याद तो तुम मुझे बहुत आये


उजियाली पाखों में,
शरद चांदनी रातों में
बैठे छत की मुंडेर पर
चांद को ताकते,
चांदनी में नहा गए
लगा कुछ ऐसा मानो,
तुमको पा गए
शबनम की बूंदो जैसे,
आंसू मेरे ढरके ही जाये
याद तो तुम मुझे, बहुत आये...
समंदर की रेत पर
निशान यादों के छप गए
समन्दर में जैसे, ज्वार भाटा लहराए
यादों के लहर वैसे, आए और जाए
याद तो तुम मुझे, बहुत आए...
सुनहरे थे वो दिन मेरे
चांदनी थीं वे राते....
जब साथ थे तुम मेरे,
कुछ गीत संग जब हम गुनगुनाए
याद
तो तुम मुझे, बहुत आए....
मैंने तो जिक्र तेरा,
किसी से किया नहीं
फिर भी ना जाने क्यों लगता है जैसे
हमारे ही फसाने, ये जमाना गाए
याद तो तुम मुझे, बहुत आए
रातों के चराग, देखो...अब बुझ गए...
यादें तुम्हारी, बन के काली घटा छाए
जाने कब बन बरखा,
ये भीगा मन बरस ही जाए
याद तो तुम मुझे, बहुत आए
इजहार करने से डरते थे....
पर मोहब्बत तो तुमसे ही करते थे...
कह न सके जो तुमसे...
अब ये जमाना, जो समझे... समझाए...
याद तो तुम मुझे, बहुत आए...!