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DrKavi Nirmal

Abstract

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DrKavi Nirmal

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वसंत ऋतु आगमन्

वसंत ऋतु आगमन्

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वसंत ऋतु के अद्भुत सौन्दर्य ने,

मेरे हृदय में पुरजोर अगन है लगाई !

तुझे पाने की चाहत ने मेरे हिया में,

अश्कों की नदियाँ कई बहवाई !

 

प्रगाड़ नींद्रा से झकझोर मुझे तुमने जगाया

तन्द्रा को रक्तिम-तिव्र किरणों से दूर भगाया !


अहिर्निष तुम्हारे लिए मैं तड़प- तरस रहा हूँ

तुम कब आओगे, पथ को एकटक तक रहा हूँ !


जड़ता पाश में बंध मैं नींद्रा में खो भ्रमित स्तब्ध हूँ

दिव्य श्नेहमय ऊष्ण स्पर्श से तन्द्रा-मुक्त हुआ हूँ !


तेरी करुणा से अब जागृत हो संभल चुका हूँ

तुम्हारी अहेतुकी कृपा हेतु मैं अति व्यध्र हूँ !


अतुल ब्रह्माण्ड में तुम अतुलनीय हो

तुम हर स्थान से उपर,- कालातीत हो !


चिदाकाश, तुम मेरे मानस पटल पर स्थापित हो

समझ रहा हूँ प्रभु मैं- तुम कण-कण के वासी हो !


चहुँओर सुगंधित पुष्पों से नभ मण्वाडल सुवासित है

हिमगिरि पिधल बन रहा चहुँदिसि वारी है !


सब कुछ है मगर तुम क्यों नहीं अब आ रहे हो

कहते हो मन मैं तेरे हूँ बैठा ! दरस नहीं दे पा रहे हो ?


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