वसंत ऋतु आगमन्
वसंत ऋतु आगमन्
वसंत ऋतु के अद्भुत सौन्दर्य ने,
मेरे हृदय में पुरजोर अगन है लगाई !
तुझे पाने की चाहत ने मेरे हिया में,
अश्कों की नदियाँ कई बहवाई !
प्रगाड़ नींद्रा से झकझोर मुझे तुमने जगाया
तन्द्रा को रक्तिम-तिव्र किरणों से दूर भगाया !
अहिर्निष तुम्हारे लिए मैं तड़प- तरस रहा हूँ
तुम कब आओगे, पथ को एकटक तक रहा हूँ !
जड़ता पाश में बंध मैं नींद्रा में खो भ्रमित स्तब्ध हूँ
दिव्य श्नेहमय ऊष्ण स्पर्श से तन्द्रा-मुक्त हुआ हूँ !
तेरी करुणा से अब जागृत हो संभल चुका हूँ
तुम्हारी अहेतुकी कृपा हेतु मैं अति व्यध्र हूँ !
अतुल ब्रह्माण्ड में तुम अतुलनीय हो
तुम हर स्थान से उपर,- कालातीत हो !
चिदाकाश, तुम मेरे मानस पटल पर स्थापित हो
समझ रहा हूँ प्रभु मैं- तुम कण-कण के वासी हो !
चहुँओर सुगंधित पुष्पों से नभ मण्वाडल सुवासित है
हिमगिरि पिधल बन रहा चहुँदिसि वारी है !
सब कुछ है मगर तुम क्यों नहीं अब आ रहे हो
कहते हो मन मैं तेरे हूँ बैठा ! दरस नहीं दे पा रहे हो ?
