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DrKavi Nirmal

Inspirational

4  

DrKavi Nirmal

Inspirational

चलते ही जाना है

चलते ही जाना है

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⚜️⚜️⚜️चलते ही जाना है⚜️⚜️⚜️
कलिः शयानो भवति, संजिहानस्तु द्वापरः।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरन्।।
चरैवेति! चरैवेति!! चरैवेति!!!
ऐतरेय ब्राह्मण में जो सो रहा है वह कलि कहा है।
निद्रा से उठ कर बैठने वाला विप्र, द्वापर युगी है।
उठकर खड़ा हो, चलने को उद्यत मानव त्रेतायुगी है।
जो चल पड़ता तो कृतयुग, सतयुग और स्वर्णयुग है।
अतयेव सतयुगी विप्र धर्म एवम् जैविक लक्षण है।
ऋषि परम्परा में, यह उपयोगी निष्कर्ष सुस्पष्ट है।
सिंहस्थ उज्जैन में या कुम्भ प्रयाग में,
भूगोल में ऐसे अनगिनत संकेत उपलब्ध हैं।
ये जीवन से जोड़ सामाजिक जागृति, शंखनाद् करते हैं।
ऊर्जा पाकर, आंतरिक व बाह्य प्रगति पथ पर, चलते जाएं।
उठ जाग दूर जाना है जो कहते, सतयुगी कर्मवीर कहलाएं। *आप्त वाक्य, करते करते मरो और मरते मरते करो।
जड़ भी चेतन हो सकता, यह भाव साधु वरण करो।
अणु-परमाणु जड़-चेतन भी अनवरत है चलायमान्।
हृदय की आयु दो सौ साल की, मानव है शक्तिमान्।
जुनून सर पर सवार होकर, जब है बोलता।
कर्मठ की गति देख, भूमण्डल यह डोलता।
गति की परिभाषा में थमना, मृत्यु है ऋणबोधिता।
जीवन है चरैवेति चाल सतयुगी, हार मानव थमता।
उठ जाग मुसाफिर दूर है जाना, सोना है खोना।
गतिशीलता ईश्वरीय अनुबंध, रुक कर है रोना।
चलना भला सुपथ, 'अतीत' का मत सोचना।
लक्ष्य है पाना धर्म, दिशाहीन हो मत डोलना।
जागतिक् दीवा स्वप्न, गति संचर-प्रतिसंचर धारा।
संकल्प धरातल पर उतर, कर्मठ प्राणी को तारा।
कर्म विधान है विधना का, प्रेम का दर्पण है शिवधाम।
प्रचण्ड एषणा ज्ञान की, वैश्विक ब्राह्मिभाव परम ज्ञान।
साधना सेवा व त्याग गतिशीलता, अध्यात्मिक संग्राम। *गतिशीलता है स्वर्ग द्वार, हरि पद मैं बसे हैं चारों धाम।
त्वरित गति से प्रगाढ़ संबंध, परमाशक्ति ही मुक्तिधाम है।
गति से हर कण चलायमान, अणु - परमाणु का प्राण है।
गति जैविक गुणवत्ता, भ्रूणीय रोमांचक स्पंदन।
गति से अथक बाल क्रीड़ा, विकास मनोरंजन।
त्वरित तरुण युवक की, अदम्य शक्ति, मेधावान है।
परिपक्व प्रौढ़ कालिक अर्जन, जीविका का युद्ध है।
गति वृद्ध की जीर्णता, संबल की खोज ही विश्राम है।
गति जनित अंतिम 'महायात्रा', कहते 'महाप्रयाण' है।
पंचतत्व धरा में विलीन वायु का कोई नहीं पार है।
प्रेम समाधि में समाहृत, पुष्प दीप चढ़ें हरओर है।
प्रेम मानव मानव से करता, नर नारी मोह की डोर।
प्रेम खग-पशु का सशक्त, मयुरपँखी छाये चहुंओर।
प्रेम के बादल आच्छादित हो बरस रहे,
रहितिमा में भी प्रेम का छाया का भोर।
तडित कौंधे चमके, यह प्रेमाचार- शोर।
गर्जना प्रेम का आकर्षक, शोर हीं उपहार।
प्रेम चाँद सूर्य से आलोकित, दृष्टव्य संसार।
सूर्य प्रभु से उष्णता पा, बने सौर्य मंडल का आधार।
सागर से ज्वार-भाटा उठ, चाँद को मानो छुए बार बार।
गति में हिमखण्ड पिघल, समुंद्र में मिल वाष्पित होए।
गति से चुम्बुकत्व आकर्षण पा, प्रचण्ड एककार होए। गतिशीलता का उत्साह नर को, नारायण बना पाता।
गतिविहीन मानव दानवसम, विनाशकारी हो जाता।
गतिशुन्यता अपराध, उष्ण हो तपे पर न जल पाता।
निस्क्रिय को सक्रिय बना, प्रेम को जीवंत है बनाता।
गति का ताप सुगंध बिखेर, बंधन बन स्वप्न दिखाए।
गतिहीन जगत् रसातल सम, नर्क द्वार दिखा रुलाए।
गति जैविक अमृत, पान कर प्रेमी मृत्युंजय बन पाए।
गति से विलग मानव, मृतप्राय हो मौन हो, सो जाए।
प्रेम बिखेर हर भक्त, चैतन्य महाप्रभु सम बन जाता।
प्रेम से विमुख, मन दैत्य बनकर, हाहाकार मचाता।
प्रेम मुखारविन्द चमका- मृदुभाषी सबका प्यारा बन जाए। सामिप्य सानिध्य पा, सांजुज्य के पथ पर, बढ़ता ही जाए।
प्रेम और सुधा अनन्य, मैं कहता प्रेम हीं है भगवान।
प्रेम चलंत, रंग बिरंगे चेहरे, प्रेम हीं मात्र है भगवान्।
प्रेम में अथक परिश्रम, विश्राम कहाँ है?
अय्यास मानव बनता भगवान कहाँ है?

डॉ. कवि कुमार निर्मल_🖋️
बेतिया नगर निगम
पश्चिम चंपारण जिला मुख्यालय
बिहार 


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