बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
जय-जयति-जय-जय शारदे!
अयि शारदे! मां शारदे!!
मन बीन को झंकार दे
सद्भाव-पारावार दे
अभिनव स्वरों का ज्वार दे
मां शारदे! मां शारदे!!
पद-पद्म का आधार दे
मां! अमित प्यार-दुलार दे
रस की अमिय बौछार दे
मां शारदे! मां शारदे!!
कवि-कल्पना को धार दे
कृति को निखार-सँवार दे
श्री, सिद्धि, जय-जयकार दे
मां शारदे! मां शारदे!!
(२)
'आज्ञा चक्र' ज्ञान का चक्र है।
चक्र भौंहों मध्य अवस्थित है।
आध्यात्म योग में महत्वपूर्ण।
मन-बुद्धि का संगम स्थल है।।
'त्रिवेणी' तंत्र योग में, इसको कहते हैं।
इड़ा-पिंगला व सुषुम्ना नाड़ी संगम हैं।
जागृत चक्र शांति एवं एकाग्रता लाए।
निर्दिष्ट आसन बालासन- वृक्षासन हैं।।
जागरण गुरुकृपा से ही है संभव।
मूल मंत्र 'ॐ' उचर, ज्ञान उद्भव।
विशुद्ध चक्र से उच्च आरोहण हैं।
त्रिकालदर्शी सिद्ध साधक भव।।
(३)
भारत का ऋतुराज बसंत।
महाकुंभ में छा रहे हैं संत।
आदि न अंत सनातन का।
चन्दन सुवास दिग दिगंत।
सुस्वागतम् बसंत पंचमी।
संत की चाह नहीं लक्ष्मी।
मण्डप सवाँर सभी कंत।
दिग दिगंत आभा अनंत।
