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Savita Gupta

Tragedy

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Savita Gupta

Tragedy

वसंत का चश्मा

वसंत का चश्मा

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जीवन में कभी ,मन पियराया था

वसंत के चश्मे से ,जब तुझको देखा था

रात वासंती दिन महुआ ,सा बौराया था।

फ़िज़ा में तेरा ही ,नशा छाया था।


रहता था जब फाँका ,मन लहराता था,

साथ तेरा सरसों के ,बगिया सा भाता था।

तू मेरी कोयल मैं भ्रमर ,गुन गुन करता था,

पतझड़ हो गया जीवन ,जो कभी फाल्गुन था।


सिमट गया है तन मन ,कंक्रीट के जाले में,

चली ऐसी आँधी, दब गया वसंत सीने में।

सहला कर तेरी चुनरी ,खो गया वसंती याद में ,

दफ़्न हैं वो यादें देख रहा हूँ ऐल्बम में ....।


जीवन में मनवा पियराया था...


आलीशान घर में फूल खिले हैं ,प्लास्टिक के,

दिवारों पर सजे हुए हैं, स्टिकर तितलियों के।

कुसुमाकर तुझ बिन वसंत भाता नहीं 

गर्दिश के वो दिन भी क्या ख़ूब दिन थे,

मलते थे गुलाल जब अपने प्यार से।

मन वसंत हो जाता था छोटे से कमरे मे...।

ख़ुशियों का कलश छलकता था अंग अंग में...।

जीवन में कभी मन पियराया था...


रीता रीता वसंत है...

फीका फीका फाल्गुन है...

पीली वाली साड़ी के तस्वीर में वसंत अब भी ज़िंदा है।


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