वो सर्दी की शाम
वो सर्दी की शाम
वो सर्दी की शाम याद है,
घर से बाहर कुछ काम ।
मुझको दवा लेनी थी,
बदन में दर्द तमाम था ।।
सन सन तेज हवा चलती थी,
मेरे बदन हड्डी तक ठिठुरती थी ।
मैं साइकल पर था सवार,
सर्दी से हाल बेहाल था ।।
जम गए थे हाथ पांव,
मत पूछो यारों क्या हाल था ।
कोई भी पास ना दिखता था,
सुनसान सा वो स्थान था ।।
किसी फरिश्ते ने आकर,
मुझको डॉक्टर तक पहुंचाया था ।
डॉक्टर के क्लिनिक में ही,
होश मुझे फिर आया था ।।