वो फिर याद आए
वो फिर याद आए
खयालों का मंजर पुराना हो गया,
यादों का समा अब फसाना हो गया।
कब आए, कब गए याद तो है,
पर गुजरे वो लम्हे जमाना हो गया।
तुम आए तो मानो,
बारिस हुई बहारों की।
कश्ती को लग गई हो जैसे,
आदत किनारों की।
फिर बदले मौसम,
और बदलते चले गए।
तुम भी बदले ऐसे,
जैसे सख्स ये अनजाना हो गया।
गुजरे वो लम्हे जमाना हो गया।
वो गीतों की महिफल, हवाओं का बहना,
कहने को बहुत कुछ, पर कुछ भी न कहना।
गरजना बादलों का, सिमटना सिसकना,
बहाना, मनाना, हंसाना, रुलाना।
मानो अब ये भूला तराना हो गया।
गुजरे वो लम्हे जमाना हो गया।
चले थे कभी रहबर मानकर,
कल रुके थे जहां उन्हें खोया जानकर।
सोचते हैं न जाएं कभी उस राह पर,
हर मोड़ जाके मिलता है उसी राह पर।
हम चलें तो कहां अब किसे थामकर,
चलने को तो राहें कई हैं मगर।
बदल देते राह-ए-मंजिलें कभी की,
पर याद उनसे वादा निभाना हो गया,
गुजरे वो लम्हे जमाना हो गया।
खुश रहो तुम जहां भी रहो ए प्रिये,
राह चलने से पहले चल उठेंगे दिये।
है हमारा नजारा वही रहगुजर,
हम चलेंगे सदा अब उसी राह पर।
माना छोटा है जीवन इसके दिन चार हैं,
पर पता तो चले "क्या यही प्यार है"।
क्युंकि नग्मे-वफा दिल ये दिवाना हो गया,
और गुजरे वो लम्हे जमाना हो गया।