वो अहसास
वो अहसास
भारत में हर दिन 90 कन्याओं और महिलाओं को 'यौन उत्पीडन' का सामना करना पड़ता है। यह उन्हीं में से एक पीड़िता कि आवाज़ है।आशा है इस कविता के माध्यम से आपको आभास होगा कि यह दर्द मौत से भी भयानक होता है।
वह रात था कुछ खास
जिसमे मै बन गई थी परिहास,
अब बस यही है आस
किसीको न हो वो अहसास।
उस रात बन गई थी मै ज़िंदा लाश
जिसमें मरने का मुुुझेे हुआ आभास,
पर फिर भी चले मेरे सांस
बड़ा दर्दनाक था वो अहसास।
सफेद कपडे रंग गए खून से
अंग-अंग डरता था वो नोचते हाथों से,
जब ज़रूरत की चीख से चलते मेरे सांस
तब किसीको न हुआ मेरे दर्द का आभास।
चीख से भर गई वो अंधेरी रात
पर किसीने न समझी मेरी बात,
न ही किसीने बचाने का किया प्रयास
न ही किसीको मेरे दुख का हुआ अहसास।
सबने दिखाया मुझ पर तरस
बोले अब इस पर न करना बहस,
अब बस यही है मेरी आस
किसी को न हो वो अहसास।
-अपर्णा
