न जाने क्यों
न जाने क्यों
न जाने क्यों
इस जुदाई के बाद
किए गए उन वादों की
विदाई के बाद,
रूह मेरा कांपता हैै
जो बातें दिल से होती थी,
अब तो निगाहों से भी न हो पाती है।
आज भी सोचती हूं
कसूर क्या था मेरा,
की अंधेरी रात में बदल गई
वो कभी न बुझने वाला सवेरा।
फिर भी इस अंधेरे में
एक रोशनी है जगमगाई,
खुशी के उन झूठी आसुओं से
जब भी किस्मत ने मिलाई।
आज भी अगर तुम्हारे साथ
उन लम्हों को पिरोउ
तो दिल करता है
अतीत को फीर पीछे ले आऊं
न जाने क्यों!!
-अपर्णा

