वो आखिरी मुलाक़ात...
वो आखिरी मुलाक़ात...
वो लड़कर खफा होकर
दूर चला जा रहा था,
मैंने रोका, पूछा
हाथ पकड़ा,
साथ क्यों छोड़ दिया
उसने झटका हाथ
जैसे दिल तोड़ दिया ,
आँखें उसकी भी नम थी
मेरे भी होंठ कंपकंपाते थे
मैंने बस इतना पूछा ,
अपने घुटनों पर बैठा
मेरा दोष बता दो
क्यों मुझको तनहा
निर्दोष दोष छोड़ दिया ,...
तपती गर्मी थी
सर्दी का मौसम नहीं था
मैं भी पसीना पसीना था
उसका भी आंसू से सुखा
पल्लू का कोई कोना नहीं था
ना बात उसने समझी
ना बात मैंने समझी
वक़्त की गिरह से तीर चले
बिछड़ना तय था
काली घटा थी हम पर
मौसम सुहाना या भोर नहीं था।