वही दिसंबर है
वही दिसंबर है
ज़िंदगी उलझती गई जितना भी सुलझाते रहे
ख़्वाहिशें मिट न सकीं, उम्रभर कमाते रहे।
नहीं था कुछ भी मेरे पास सिवाय ईमां के
फ़क़त ये दौलत थी जिसको हम बचाते रहे।
यूं ही लोगों ने मेरा नाम उससे जोड़ दिया
ये इक दाग़ था जो ताउम्र छुड़ाते रहे।
उसने एक बार कहा था कि हंसी अच्छी है
तबसे हम सारे ग़म हंसी में ही छुपाते रहे।
उन्हें लगता था हमें कुछ नहीं पता है मगर
लबों से चुप रहे वो आंखों से बताते रहे।
ख़ामोश था मैं और वो भी कुछ नहीं ब
ोला
बात सारी हुई फिर भी सब छुपाते रहे।
हमने हर बार उसी शख्स से धोका खाया
जिसको अपना कहा जिसपे हम इतराते रहे।
के पहले दिल गया, फिर जां गई, फिर होश-ओ-हवास
मगर हम हंसते रहे और मुस्कुराते रहे।
रहे दुनिया मे मगर दुनिया से बेगाने रहे
ख़ुद ही से छुपते रहे ख़ुद को ही छुपाते रहे।
मैं हूं, आसमां है और ये तारे हैं
यही महफ़िल है जिसे हर शब सजाते रहे।
ये वही रात है, और वही दिसंबर है
बस वही याद रहा जिसको हम भुलाते रहे।