सर्दी
सर्दी
कोहरे की कई चादर ओढ़े, दिन दस्तक दे जाता है
रातों का क्या कहर बताँए, बिस्तर से ही नाता है।
धूप भी ठिंठुरी जाती है और,सूरज भी शर्माता है
शाम अधेंरे मे सिमटी, जाड़ा बहुत सताता है।
उछल-कूँद सब भूल चुके है, पच्चीसा ही भाता है
माँ, बापू की डाँट पड़े, देर से तन उठ पाता है
सुबह सवेरे पूजा होना, इंतिहान करवाता है
राम नाम जो मंत्रो मे था,अब जल्दी ही आता है।
स्कूलों की छुट्टी होती, बच्चा शोर मचाता है
सुनने की तो सुध नहीं रखता, पढ़ने से कतराता है
सर्दी का प्रकोप कई,बीमारी दिखलाता है
बच्चों बूढों को ठंडक मे,एतिंयात खूब छाता है।
गर्म हथेली ताप रहें है, मौसम खूब डराता है
स्वेटर जाँकेट निकल चुकी है, टोपा मन दहलाता है
बाल नही कढ़ सकते अब ,जो सुष्मा को हर्षाता है
रँगबाजी एक कोने में है, कंडा आग जलाता है।
चोरों, झूठों व छलिओं में भी, ठंडक का ताता है
मन में बेचैनी रहती, डर से तन कपकँपाता है
पछतावें व हार मे जब भी, मन हिचकोले खाता है
ठंडे पड जाते हैं सब हीं, हर मौसम बतलाता है।
मन की सर्दी दूर करें हम, जीवन हमें बताता है
तन की सर्दी में हर कोई, साधन खूब जुटाता है
नेकी,चेतना,और दिलासा, मन का मैल हटाता है
सर्दी को नमस्कार, हर कोई इस ठंडक को गरियाता है।