वो आई
वो आई
वो आई
मेरे टूटे झोंपड़े में
ताज़ी हवा के झोंके की तरह ,
मेरे अंतस के
तिनके तिनके को हिला दिया
मेरे ही झोंपड़े की भांति ।
उषा की लालिमा लिए
गालों पर,
होंठों पर गुलाब की मुस्कान
कमल सा खिला रूप लिए
व्योमवृत को सुवासित करती
उसकी सुगन्धि,
कर दिया झंकृत
मेरे मन वीणा के तारों को।
कुंचित केश
मृगनयनी ,
यौवन के घोड़े पर सवार
रूप को और भी दे रहा लावण्य
कानों का ये शृंगार।
चुरा कर संध्या सुंदरी का रूप
ओढ़ लिया उसने अपने तन पर ,
बनकर रजनीगंधा
महका दी रातें मेरी
ऐसा यौवन
मुझको तो कहीं और
असंभव लगता है।