Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Juhi Grover

Abstract Tragedy

4  

Juhi Grover

Abstract Tragedy

वक़्त का चिराग़

वक़्त का चिराग़

1 min
186


वक़्त का चिराग़ बुझते बुझते,

ज़िन्दगी का सफ़र थमते थमते,

एक रोशनी की किरण पास आई।


ऊपर से मुस्कुराहट थी,

अन्दर कुछ दर्द सा था,

लगती वो बिल्कुल परी सी थी,

वो वक़्त का तीव्र तूफ़ान था,

उसकी ओर देखते देखते,

बिना किसी पल रुकते रुकते

रोशनी की किरण में ही आलोप हो गई।


जीने की वो वजह थी मगर,

वक़्त का ही कुछ प्रभाव था,

बिल्कुल पास रहती थी मगर,

उसका हर पल,

ज़िन्दगी से दूर होता था,

सांझ का प्रहर ढलते ढलते,

उसके मेरी आँखों से ओझल होते होते,

निशा जैसे वक़्त से पहले आने को थी।


एक बुझते दीये की लौ हो जैसे,

पुकार रही हो ज़िन्दगी को जैसे,

और ज़िन्दगी उससे कोसों दूर जा रही थी,

और ज़िन्दगी में ही कुछ कदम चलते चलते,

पथ पर थोड़ा थकते थकते,

ज़िन्दगी की साँस थमने को थी।


वक़्त का चिराग़ बुझते बुझते,

ज़िन्दगी का सफ़र थमते थमते,

एक राेशनी की किरण बुझने को थी।

   


Rate this content
Log in