विवाहिता वो नारी
विवाहिता वो नारी
विवाहिता वो नारी, नारी की वो लाल साड़ी
रूप उसका सलोना जब श्रृंगार करने लगे
बिंदिया वो लाल, लाल है गोरी के गाल
हौले हौले से वो जब अपनी माँग भरने लगे
काले मोतियो की माला, माला गले में वो डाल
हाथ मोतियों पे फेर, उन में जान भरने लगे
आईना निहार, निहार अपना सार
आईना अपने अस्तित्व को स्वीकार करने लगे
मुस्कान मंद मंद, उसका रूप रंग, अंग उसका
चाँदनी मे नहाकर, बखान करने लगे
वो सहज सी उसकी चाल, चाल है वो बेमिसाल
पग हर एक आँगन में आनंद भरने लगे
थाम प्रियतम का हाथ, चलती है साथ साथ
सफर वो ज़िन्दगी का, आसान करने लगे
देके प्रियतम का अंश, घर को देके वो वंश
वात्सल्य का खुद में विस्तार करने लगे
विवाहिता वो नारी, नारी की वो लाल साड़ी
रूप उसका सलोना जब श्रृंगार करने लगे।।
